BJP Politics: मध्य प्रदेश में चौथी पर मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान क्या वाकई में अपनी पार्टी से अब खफा हो गए हैं। क्या भाजपा के संसदीय बोर्ड से हटाए जाने के बाद शिवराज का मूड खराब हो गया है। आखिर क्या वजह थी कि लगातार एमपी में भाजपा को जीत दिलाने वाले शिवराज को भाजपा ने 11 सदस्यीय संसदी बोर्ड से उनकी छुट्टी कर दी। क्या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से इन दिनों शिवराज की जम नहीं रही, इत्यादि ऐसे कई सवाल हैं जो आम लोगों को मन में चल रहे हैं।
भाजपा के केंद्रीय संसदीय बोर्ड से हटाये जाने के बाद एक प्रतिक्रिया के दौरान एमपी के सीएम का दर्द आखिरकार छलक ही पड़ा। उन्होंने कहा कि पार्टी दरी बिछाने को कहेगी तो भी बिछाऊंगा, जो भी काम मुझसे करने के लिए कहा जाएगा उसे पूरी तन्मयता से करूंगा। यह कहकर शिवराज पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता और आज्ञाकारी सिपाही होने की अपनी छवि को प्रस्तुत करना चाह रहे थे, लेकिन उनके दरी बिछाने वाले शब्दों में संसदीय बोर्ड से हटाए जाने का दर्द भी साफ झलक रहा था। यह वही शिवराज हैं, जिन्हें वर्ष 2014 से पहले पीएम पद का प्रमुख दावेदार बताया जाता था। गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के तब यह पीएम पद की राह में सबसे बड़े प्रतिद्वंदी माने जा रहे थे। तब शिवराज का कद भाजपा में बहुत बढ़ गया था। इसकी वजह एमपी में लगातार भाजपा को जीत दिलाना था।
वर्ष 2014 में पहली बार संसदीय बोर्ड में शामिल हुए थे शिवराज
एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान को वर्ष 2014 में पहली बार संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था। तब से वह इसके सदस्य बने हुए थे। इसी वर्ष पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी और वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया था। तब यह कहा गया था कि तीनों नेताओं की उम्र 75 वर्ष से अधिक होने के चलते यह फैसला किया गया। तब से लेकर अब तक वह करीब आठ वर्ष तक संसदीय बोर्ड के सदस्य रहे। अब शिवराज सिंह चौहान के साथ वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की भी छुट्टी कर दी गई। भाजपा ने इसे सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने का प्लान बताया।
शिवराज सिंह का राजनीतिक करियर
शिवराज सिंह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पक्के सिपाही माने जाते हैं। 13 वर्ष की उम्र में ही वह आरएसएस से जुड़ गए थे। वर्ष 1990 में वह पहली बार भाजपा की टिकट से बुधनी से विधायक चुने गए। यहीं से 1991 में लोकसभा सांसद बने। इसके बाद यहां से लगातार पांच बार विधायक चुने गए। वर्ष 2003-04 में उन्हें पहली बार भारतीयन जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद 2005 में वह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठे। फिर 2018 तक लगातार एमपी के सीएम रहे, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस से चार पांच सीटों के अंतर से पीछे रह गए। जिससे एमपी में कांग्रेस की सरकार बन गई। हालांकि बाद में हुए सियासी उलटफेर में वह चौथी बार एमपी के मुख्यमंत्री बन गए। तब से उनका सियासी कद और भी बड़ा हो गया।
शीर्ष नेतृत्व से आती रहीं अनबन की खबरें
एक समय था जब अटल, आडवाणी, जोशी, सुषमा और जेटली युग में शिवराज सिंह चौहान की राजनीतिक धमक और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के चहेते थे। मगर शाह-मोदी युग में अंदरखाने से अक्सर उनके अनबन की खबरें आती रहीं। हालांकि उन्होंने कभी इन बातों को जाहिर नहीं होने दिया। पार्टी उन्हें मौके भी देती रही। वर्ष 2014 में संसदीय बोर्ड में शामिल करने की वजह भी यही थी। इसके बाद एमपी में राजनीतिक समीकरण बदलने पर भाजपा ने चौथी बार उन्हें सीएम बनवाया। मगर अब शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया। अब क्या भाजपा उन्हें कोई नई जिम्मेदारी देगी या फिर उनका कद और घटाया जाएगा। यह सब तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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