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Hindi News भारत राजनीति 'दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए', पटना में विपक्षी दलों की बैठक से पहले मायावती ने कसा तंज

'दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए', पटना में विपक्षी दलों की बैठक से पहले मायावती ने कसा तंज

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने विपक्षी दलों की पटना में 23 जून को होने वाली बैठक से पहले उनपर तंज कसा है। उन्होंने कहा-'दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए'

मायावती, पूर्व मुख्यमंत्री, यूपी- India TV Hindi Image Source : पीटीआई मायावती, पूर्व मुख्यमंत्री, यूपी

लखनऊ: केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ 2024 की रणनीति तय करने के लिए तमाम विपक्षी दल जहां पटना में एकजुट हो रहे हैं वहीं बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इन पर तंज कसा और कहा कि यह मीटिंग 'दिल मिले न मिले हांथ मिलाते रहिए’ की कहावत को ज्यादा चरितार्थ करता है।

मायावती ने आज एक के बाद एक कई ट्वीट कर जहां विपक्षी दलों की एकता पर तंज कसा वहीं बीजेपी और कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इन दलों में समतामूलक संविधान को सही से लागू करने की क्षमता नहीं है।

संविधान को सही से लागू करने की क्षमता कांग्रेस, बीजेपी में नहीं

मायावती ने अपने ट्वीट में कहा-महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन, अशिक्षा, जातीय द्वेष, धार्मिक उन्माद/हिंसा आदि से ग्रस्त देश में बहुजन के त्रस्त हालात से स्पष्ट है कि परमपूज्य बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के मानवतावादी समतामूलक संविधान को सही से लागू करने की क्षमता कांग्रेस, बीजेपी जैसी पार्टियों के पास नही है। 

दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए

उन्होंने अपने दूसरे ट्वीट में विपक्षी दलों पर तंज कसा और कहा-'अब लोकसभा आम चुनाव के पूर्व विपक्षी पार्टियां जिन मुद्दों को मिलकर उठा रही हैं और ऐसे में नीतीश कुमार द्वारा कल 23 जून की विपक्षी नेताओं की पटना बैठक 'दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए’ की कहावत को ज्यादा चरितार्थ करता है।

'मुंह में राम बग़ल में छुरी’ कब तक चलेगा

मायावती ने कहा-'वैसे अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी को ध्यान में रखकर इस प्रकार के प्रयास से पहले अगर ये पार्टियां, जनता में उनके प्रति आम विश्वास जगाने की गरज से, अपने गिरेबान में झांककर अपनी नीयत को थोड़ा पाक-साफ कर लेतीं तो बेहतर होता। 'मुंह में राम बग़ल में छुरी’ आख़िर कब तक चलेगा?

विपक्षी दल अपने उद्देश्य के प्रति गंभीर नहीं

उन्होंने कहा कि यूपी में लोकसभा की 80 सीट चुनावी सफलता की कुंजी कहलाती है, किन्तु विपक्षी पार्टियों के रवैये से ऐसा नहीं लगता है कि वे यहां अपने उद्देश्य के प्रति गंभीर व सही मायने में चिन्तित हैं। बिना सही प्राथमिकताओं के साथ यहां लोकसभा चुनाव की तैयारी क्या वाकई जरूरी बदलाव ला पाएगी?

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