नई दिल्ली: राजस्थान में इस साल के नत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मौजूदा समय में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अशोक गहलोत काबिज हैं लेकिन राज्य में पार्टी और सरकार की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। मुश्किल बढ़ाने वाला और कोई नहीं बल्कि पार्टी का ही बड़ा नेता है और वह नेता हैं सचिन पायलट। सचिन पायलट के पिछले कुछ वर्षों से कई मुद्दों को लेकर अशोक गहलोत और उनके गुट के नेताओं से छत्तीस का आंकड़ा है।
11 अप्रैल को सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठे थे पायलट
वैसे तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जंग पिछले कई वर्षों से चल रही है। लेकिन 11 अप्रैल को सचिन पायलट ने एक ऐसा दांव चला, जिससे कांग्रेस पार्टी और गहलोत सरकार ही मुश्किल में आ गई। सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ एक दिन के अनशन पर बैठ गए। इसके बाद पार्टी के राज्य प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा ने उनके इस अनशन को पार्टी विरोधी गतिविधि करार दिया और इसके बाद उन्हें दिल्ली तलब कर लिया गया। बताया जा रहा है कि दिल्ली में आलाकमान में इस विषय को लेकर कई बैठकें हुईं और निर्णय यह हुआ कि अभी बिना सचियन पायलट से बात किए किसी नतीजे पर न पहुंचा जाए।
कमलनाथ और वेणुगोपाल को सौंपा गया है जिम्मा
सूत्रों के द्वारा आई खबर के अनुसार, सचिन को लेकर आलाकमान जल्दबाजी नहीं करेगा। सचिन युवा चेहरा हैं और पार्टी चुनावी साल में कोई गलत फैसला नहीं लेना चाहती है। पहले पायलट से बातचीत की जाएगी और उसके बाद ही कोई नतीजा लिया जाएगा। उनसे बात करने की जिम्मेदारी कमलनाथ और केसी वेणुगोपाल को दी गई है। वह ही पायलट से बात करेंगे और पूरी जानकारी आलाकमान तक पहुचाएंगे। इसके साथ ही राजेश पायलट के कुछ साथी भी सचिन के खिलाफ कार्रवाई न करने की बात कर रहगे हैं और ये नेता भी उनसे संपर्क बनाए हुए हैं।
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