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असम में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भीड़ देख जोश में कांग्रेस, जनाधार वापस पाने की जगी उम्मीद

राहुल गांधी की पहल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को असम समेत कई राज्यों में जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है, हालांकि एक्सपर्ट्स के मन में इसे लेकर संदेह है कि लोगों की यह भीड़ वोटों में तब्दील होगी भी या नहीं।

Bharat Jodo Yatra, Bharat Jodo Yatra Assam, Bharat Jodo Yatra Congress- India TV Hindi Image Source : TWITTER.COM/BHUPENKBORAH असम में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिली प्रतिक्रिया से कांग्रेस उत्साहित है।

गुवाहाटी: असम में कांग्रेस आजादी के बाद से ही एक बड़ी ताकत रही थी, लेकिन पिछले 8 सालों में पार्टी का जनाधार तेजी से खिसकता दिखा है। हालांकि राहुल गांधी की पहल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के प्रति प्रदेश के लोगों ने जैसी प्रतिक्रिया दी है, उसे देखकर कांग्रेस के नेता जोश में हैं। वहीं, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यात्रा ने भले ही राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है, लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि इसका कितना चुनावी लाभ मिल पाता है।

‘लोगों से उम्मीद से बेहतर प्रतिक्रिया मिली
प्रदेश कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का 45 दिनों में 535 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद पिछले हफ्ते असम के सबसे पूर्वी बिंदु सादिया में समापन हुआ। असम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष देबब्रत सैकिया ने कहा कि यात्रा ने पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया है, खासकर चुनावी हार के बाद। वहीं, लोकसभा सदस्य अब्दुल खलीक ने कहा, ‘लोगों से उम्मीद से बेहतर प्रतिक्रिया मिली। कुछ लोगों ने सोचा था कि यात्रा जब अल्पसंख्यक बहुल इलाकों से बाहर निकलेगी तो इसमें भारी संख्या में जनता की भागीदारी नहीं दिखेगी। लेकिन सभी जाति और समुदायों के लोग हमारे साथ शामिल हुए।’

चुनावी लाभ को लेकर एक्सपर्ट ने जताया संदेह
गुवाहाटी स्थित हांडिक गर्ल्स कॉलेज में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर पल्लवी डेका का मानना है कि यात्रा ने देशभर में कांग्रेस के समर्थकों में जोश भरने का काम किया है, लेकिन उन्होंने पार्टी की चुनावी किस्मत पर इसका कोई असर पड़ने को लेकर संदेह जताया। कांग्रेस ने आजादी के बाद से 1980 के दशक के मध्य तक असम में शासन किया, लेकिन इस दौरान 3 साल की अल्प अवधि के लिए (1977 से 79 तक) इसे जनता दल सरकार को सत्ता सौंपनी पड़ी।


2014 से ही असम की सत्ता से बाहर है कांग्रेस
कांग्रेस को राज्य में पहली बार तब चुनौती का सामना करना पड़ा जब 1979 से 1985 तक चले असम आंदोलन ने इसे झकझोर कर रख दिया। नई पार्टी असम गण परिषद (AGP) का कांग्रेस के विकल्प के रूप में उदय हुआ और इसने वर्ष 1985 में सत्ता हासिल कर ली। हालांकि, वर्ष 1991 में कांग्रेस सत्ता वापस पाने में कामयाब रही। इसके बाद 1996 में फिर से AGP की अगुवाई में सरकार का गठन हुआ, लेकिन एक बार फिर वर्ष 2001 से 2014 तक कांग्रेस सत्ता में रही।

हिमंत विश्व शर्मा को खोना रहा घातक
2014 में असम की सत्ता एक बार फिर कांग्रेस के हाथों से फिसल गई, क्योंकि पार्टी के उभरते सितारे हिमंत विश्व शर्मा कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। शर्मा के साथ आने के बाद असम विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने पहली बड़ी जीत हासिल की और तभी से राज्य की सत्ता में है। शर्मा की रणनीतियों से न सिर्फ असम में, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर में बीजेपी को काफी फायदा हुआ और आज वह इस क्षेत्र के कई राज्यों की सरकार चला रही है, या सरकारों में शामिल है। (भाषा)

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