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Chunav Flashback: जम्मू-कश्मीर के पहले चुनावों में जमकर हुआ था बवाल, एक ही पार्टी ने जीत ली थीं सारी सीटें

जम्मू कश्मीर में राज्य की Constituent Assembly के लिए हुए पहले चुनावों में काफी अनियमितता की शिकायत मिली थी और चुनावों के बाद भी जमकर बवाल हुआ था।

Jammu Kashmir Elections, Jammu Kashmir Elections 2024- India TV Hindi Image Source : AP FILE जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला से बात करते प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू।

नई दिल्ली: जम्मू एवं कश्मीर के विधानसभा चुनावों को लेकर इन दिनों काफी गहमागहमी देखने को मिल रही है। विभिन्न सियासी दलों ने अपने-अपने घोषणापत्रों में एक से बढ़कर एक लोकलुभावन वादे किए हैं। इन चुनावों में एक तरफ बीजेपी, एक तरफ कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन तो एक तरफ PDP और अन्य छोटी-छोटी पार्टियां हैं। सूबे की 90 विधानसभा सीटों में से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के लिए सभी पार्टियां पूरा जोर लगा रही हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि 1951 में हुए सूबे के पहले चुनाव में किस पार्टी ने उस समय की सारी की सारी 75 सीटें जीतकर कभी न टूटने वाला रिकॉर्ड बना दिया था?

1951 में हुए थे सूबे के पहले चुनाव

जम्मू-कश्मीर में पहले चुनाव 1951 में हुए थे और तब 75 सीटों के लिए नुमाइंदे चुने जाने थे। उस जमाने में जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री नहीं बल्कि प्रधानमंत्री चुने जाते थे। सूबे के लिए चुनावों को तब राज्य के इलेक्शन एंड फ्रैंचाइजी कमिश्नर ने कराया था। ये चुनाव शुरू से ही अनियमितताओं में फंस गए थे और इसे लेकर तब काफी आलोचना हुई थी। प्रजा परिषद नाम की पार्टी ने चुनाव में अनैतिक गतिविधियों और प्रशासनिक हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था। चुनावों के बाद भी हालात कुछ अच्छे नहीं रहे थे और काफी बवाल मचा था।

किसने जीता था 1951 का चुनाव?

1951 के चुनाव में शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली पार्टी जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सभी 75 सीटें जीत ली थीं। कश्मीर डिविजन की सभी 43 सीटों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रत्याशी चुनावों से एक हफ्ते पहले ही निर्विरोध जीत गए थे। जम्मू में जम्मू प्रजा परिषद के 13 प्रत्याशियों का नामांकन खारिज हो गया था, जिसके बाद प्रजा परिषद ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया। लद्दाख में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नामांकित सदस्यों के रूप में प्रमुख लामा और उनके एक साथी ने जीत दर्ज की थी। इस तरह सभी 75 सीटें जीतकर जम्मू कश्मीर के शेख अब्दुल्ला निर्वाचित प्रधानमंत्री बने थे।

जब जेल में डाल दिए गए अब्दुल्ला

चुनावों के बाद जम्मू प्रजा परिषद को जब लोकतांत्रिक विपक्ष के रूप में मौका नहीं मिला तो वह सड़कों पर उतर आई। इसने 'शेख अब्दुल्ला की डोगरा विरोधी सरकार' के खिलाफ 'लोगों के वैध लोकतांत्रिक अधिकारों' को सुनिश्चित करने के लिए भारत के साथ राज्य के पूर्ण एकीकरण की मांग की। प्रजा परिषद के साथ विवाद इतना बढ़ा कि केंद्र सरकार ने 1953 में शेख अब्दुल्ला को पद से हटाकर जेल में डाल दिया और बख्शी गुलाम मोहम्मद को जम्मू कश्मीर का अगला प्रधानमंत्री बना दिया।

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