Bihar BJP Meeting: जेडीयू के साथ गठबंधन टूटने को लेकर गृह मंत्री अमित शाह का बड़ा बयान सामने आया है। सूत्रों के हवाले से ये पता चला है कि मंगलवार शाम हुई बीजेपी कोर ग्रुप की मीटिंग में अमित शाह ने कहा कि जेडीयू के अलग होने से अगले लोकसभा चुनाव में हमें फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि 35 सीट पर जीत का टारगेट रखकर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। इस दौरान शाह ने प्रदेश संगठन के नेताओं को जी जान से जुटने को कहा और कोर ग्रुप के सभी नेताओं को हर जिले में प्रवास शुरू करने को कहा।
अमित शाह ने कहा कि आरसीपी सिंह के बारे में नीतीश का बहाना गलत है। क्या वो मुझसे नहीं कह सकते थे। मेरी और नीतीश की 2 बार बात हुई थी। नीतीश ने कहा था कि हमें 2 कैबिनेट मंत्री चाहिए ,एक राज्यसभा सांसद को देंगे और एक लोकसभा सांसद को। हमने कहा कि अभी फॉर्मूले के तहत सभी गठबंधन को एक मंत्री पद दे रहे हैं तो नीतीश ने आरसीपी सिंह का नाम दिया था।
शाह ने ये भी कहा कि हमने उनसे ये कहा था कि आगे विस्तार में एक और सीट दे सकते हैं और इस बात पर नीतीश भी सहमत हुए थे।
जेडीयू तोड़ चुकी है बीजेपी के साथ गठबंधन
बता दें कि बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव हो चुका है। जनता दल यूनाइटेड (JDU) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) का गठबंधन टूट चुका है और जेडीयू ने आरजेडी के साथ मिलकर बिहार में सरकार बना ली है। बता दें कि इस दौरान जेडीयू के विधायकों, सांसदों और नेताओं ने साफ कहा था कि वे नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के हर फैसले के साथ हैं।
क्यों टूटा जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन?
पीएम मोदी से बढ़ती दूरी: बीते कुछ समय से खबरें सामने आ रही थीं कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और पीएम मोदी (PM Modi) के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और उनके रिश्तों में दरार आ रही है। इस खबर पर तब और जोर मिला जब रविवार को नीति आयोग की मीटिंग में भी नीतीश (Nitish Kumar) नहीं गए। इसके अलावा नीतीश बीते 4 मौकों पर बीजेपी की मीटिंग में शामिल नहीं हुए।
बीजेपी का हावी रहना और JDU के पास कम सीटों का होना: साल 2020 में जब विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए थे तो उसी समय लोगों को ये लग रहा था कि नीतीश (Nitish Kumar) ने गठबंधन किसी मजबूरी में किया है। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि जेडीयू के पास बीजेपी से लगभग आधी संख्या में ही विधायक थे, इसके बावजूद नीतीश को सीएम पद दिया गया। ऐसे में बीजेपी हमेशा से नीतीश पर हावी रही।
चिराग पासवान और आरसीपी सिंह केस: चुनाव के दौरान पहले चिराग पासवान का मुद्दा उठा और फिर आरसीपी सिंह का। बीजेपी आरसीपी सिंह को मंत्री पद पर बनाए रखना चाहती थी, लेकिन नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने उन्हें राज्यसभा टिकट नहीं दिया। नीतीश को लगने लगा था कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसा खेल बीजेपी खेल रही है और उनकी पार्टी में सेंधमारी की कोशिश कर रही है। हालांकि बीजेपी उन्हें ये भरोसा दिलाने की कोशिश करती रही कि ऐसा कुछ नहीं है।
नेताओं की बयानबाजी: जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने राज्य में सरकार तो बना ली थी कि नेताओं का अपनी जुबान पर काबू नहीं था। बीजेपी लगातार नीतीश (Nitish Kumar) सरकार पर सवाल उठा रही थी, जिससे विपक्ष को फायदा मिल रहा था। ऐसे में नीतीश सरकार में होते हुए भी निराशा से गुजर रहे थे।
आरजेडी का स्टैंड: एक तरफ बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) निराशा महसूस कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ आरजेडी (RJD) वेट एंड वॉच की भूमिका में थी। आरजेडी इस बात को बखूबी समझती थी कि अगर नीतीश कुमार, बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ते हैं तो उनके पास आरजेडी से हाथ मिलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। क्योंकि अगर नीतीश ने आरजेडी से हाथ नहीं मिलाया तो उनकी सरकार बिहार में गिर जाएगी।
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