Ashok Gehlot: राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को देश के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगई को लेकर बड़ा बयान दिया है। अशोक गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है और फिर बाद में उनमें से एक रंजन गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश बन गए। गहलोत ने आगे कहा कि मैंने राष्ट्रपति से पूछा था कि क्या गोगोई पहले ठीक थे या अब ठीक हैं?
गहलोत बोले- ये मेरी समझ से परे
राजस्थान के सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने 18वें अखिल भारतीय विधिक सेवा प्राधिकरणों के दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एम वी रमण और केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू भी मौजूद थे। इस दौरान गहलोत ने कहा कि कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने कहा था कि लोकतंत्र खतरे में है और फिर बाद में उनमें से एक रंजन गोगोई देश के मुख्य न्यायाधीश बन गए। मैंने राष्ट्रपति से पूछा था कि क्या गोगोई पहले ठीक थे या अब ठीक हैं? यह मेरी समझ से परे है। फिर वे सांसद बन गए।
"मुझे नहीं पता कि मेरी सरकार कैसे बच गई"
अशोक गहलोत ने देश में चुनी हुई राज्य सरकारों को गिराए जाने पर भी कटाक्ष किया और कहा कि देश के हालात बहुत नाजुक हैं, इस बारे में हम सबको सोचना होगा। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अशोक गहलोत ने कहा कि गोवा, मणिपुर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सरकारों को उखाड़ा जा रहा है। क्या देश में लोकतंत्र है? गहलोत ने आगे कहा कि मुझे नहीं पता कि मेरी सरकार कैसे बच गई। मैं आज आपके सामने खड़ा नहीं होता। आप आज किसी और मुख्यमंत्री से मिल रहे होते।
"शपथ लेने के बाद भी हम 'राइट-लेफ्ट' होते हैं तो..."
जयपुर में आयोजित कार्यक्रम में गहलोत ने कहा, "हम बार-बार कहते हैं कि देश में तनाव है, हिंसा का माहौल है। यह नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र सहिष्णुता पर टिका होता है। सहिष्णुता तो लोकतंत्र का गहना है, जो आज गायब है।" उन्होंने कहा, "मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री, अगर वह कोई बात कहेगा तो देश सुनेगा। तो क्या प्रधानमंत्री जी को यह नहीं कहना चाहिए कि देश में भाईचारा, प्रेम-मोहब्बत, सद्भावना रहनी चाहिए और किसी कीमत पर हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।" गहलोत ने मंच पर आसीन रिजीजू से कहा वे उनकी इस भावना को प्रधानमंत्री मोदी तक पहुचाएं।
गहलोत ने कहा कि विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और न्यायाधीश, हम सब शपथ लेते हैं। अगर शपथ की मूल भावना को भी आत्मसात कर लें, उससे इधर-उधर (राइट-लेफ्ट) नहीं भटकें तो भी काम चल जाएगा। शपथ लेने के बाद भी हम लोग 'राइट-लेफ्ट' होते हैं तो संतुलन बिगड़ता है।
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