चुनाव Flashback: जब इंदिरा की मनमानी के कारण 1967 में कांग्रेस दिल्ली में एक सीट पर सिमट गई थी
1967 में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को भारी नुकसान हुआ था। दिल्ली की सात में से छह सीटों पर पार्टी को हार झेलनी पड़ी थी। टिकट बंटवारे में इंदिरा गांधी की मनमर्जी कांग्रेस की हार का कारण बनी थी।
चुनाव Flashback: लोकसभा चुनाव 2024 में पहले चरण का मतदान शुरू हो चुका है। सात चरणों में मतदान के बाद 4 जून को नतीजे आएंगे। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की कोशिश में है। हालांकि, चुनाव के नतीजे और हार-जीत की वजह मतदान पूरा होने के बाद ही पता चलते हैं। कई बार पार्टियों को घर के भेदी ही भारी नुकसान पहुंचाते हैं। 1967 में कांग्रेस के साथ ऐसा ही हुआ था। दिल्ली में सत्ताधारी पार्टी सात में से छह सीट हार गई थी।
कांग्रेस की हार का कारण थे दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रम्ह प्रकाश यादव। वह खुद तो लोकसभा चुनाव जीत गए थे, लेकिन अन्य छह सीटों पर अपनी ही पार्टी को हराने के लिए पूरा जोर लगाया था और कांग्रेस दिल्ली की अन्य किसी भी सीट में जीत नहीं हासिल कर पाई थी।
जनसंघ को मिली थी सभी सीटें
इस चुनाव में पहली बार जनसंघ ने दिल्ली में छह सीटें जीती थी। एकमात्र सीट चौधरी ब्रम्ह प्रकाश जीते थे, लेकिन इसमें भी जीत का अंतर कम था। इसी चुनाव में मौजूदा सांसदों के हारने का सिलसिला शुरू हुआ था। कांग्रेस के तीन सांसद हार गए थे। लगातार तीन चुनाव जीतने वाले नवल प्रभाकर को भी चौथे चुनाव में हार झेलनी पड़ी थी। नई दिल्ली से मीर चंद खन्ना, चांदनी चौक से श्याम नाथ को भी हार झेलनी पड़ी थी। सिर्फ चौधरी ब्रम्ग प्रकाश ही चुनाव जीत पाए थे। वह दूसरी बार सांसद बने थे। उन्हें बाहरी दिल्ली लोकसभा सीट से जीत मिली थी, जबकि पहले चुनाव में वह सदर से सांसद बने थे।
जमानत नहीं बचा पाए थे 31 उम्मीदवार
1967 में दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में 46 नेताओं ने चुनाव लड़ा था। इनमें से 15 उम्मीदवार ही अपनी जमानत राशि बचा पाए थे। सातों सीटों पर चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों के साथ दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार और चांदनी चौक में तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार की जमानत बच गई थी। इसके अलावा अन्य 31 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।
बागी नायर भी नहीं बचा पाए थे जमानत
सीके नायर पहले और दूसरे चुनाव में बाहरी दिल्ली से सांसद बने थे। वह चौथे चुनाव में भी लड़ना चाहते थे,लेकिन उनको टिकट नहीं मिला। ऐसे में वह बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि, जनता ने उनका साथ नहीं दिया और वह तीसरे नंबर पर रहे। उनकी भी जमानत जब्त हो गई थी।
चुनाव से पहले बढ़ी थीं दो सीटें
पहले लोकसभा चुनाव के में दिल्ली में तीन सीट थी, जबकि दूसरे चुनाव में एक सीट बढ़ा दी गई। इसी तरह तीसरे चुनाव से पहले भी एक सीट बढ़ाई गई। इस चुनाव के दौरान दिल्ली में एक बार फिर सीटों की संख्या में इजाफा किया गया और कुल सीटों की संख्या सात पहुंच गई। पूर्वी दिल्ली और दक्षिण दिल्ली नाम से दो नई सीटें बनाई गई थी। दोनों पर जनसंघ के उम्मीदवार जीते थे।
इंदिरा की मनमानी के चलते हारी कांग्रेस
1952 में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने चौधरी ब्रह् प्रकाश इस चुनाव तक कांग्रेस के कद्दावर नेता बन चुके थे और दिल्ली की सभी सात सीटों पर अपनी पसंद के नेताओं को टिकट दिलाना चाहते थे। इंदिरा गांधी ने उनको तो टिकट दे दिया था, मगर अन्य सीटों पर अपनी मर्जी से टिकट दिए थे। इस कारण चौधरी ब्रह्म प्रकाश नाराज हो गए और वे अन्य छह सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को हरवाने में लग गए थे। वह अपने मकसद में सफल भी रहे। इस चुनाव के बाद उन्होंने कांग्रेस से नाता भी तोड़ दिया था। इस चुनाव में कांग्रेस पूरे देश में जीती थी, लेकिन दिल्ली में उसे हार का सामना करना पड़ा था।
लोकसभा सीट | विजेता उम्मीदवार | दल |
---|---|---|
नई दिल्ली | एमएस सोंधी | जनसंघ |
दक्षिण दिल्ली | बलराज मधोक | जनसंघ |
बाहरी दिल्ली | चौ. ब्रह्मप्रकाश | कांग्रेस |
पूर्वी दिल्ली | एच देवगन | जनसंघ |
चांदनी चौक | आर गोपाल | जनसंघ |
दिल्ली सदर | केएल गुप्ता | जनसंघ |
करोल बाग | आरएस विद्यार्थी | जनसंघ |
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