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Hindi News भारत राजनीति फ्लैशबैक 2017: भारत के संसदीय इतिहास में कई मामलों में यादगार रहेगा साल 2017

फ्लैशबैक 2017: भारत के संसदीय इतिहास में कई मामलों में यादगार रहेगा साल 2017

वर्ष 2017 को कई मामलों में एक स्मरणीय साल के रूप में याद रखा जाएगा क्योंकि इस साल रेल बजट को आम बजट में मिला देने, आम बजट को नये वित्त वर्ष से पहले ही पारित करने तथा मध्य रात्रि को केन्द्रीय कक्ष में जीएसटी कानून लागू करने सहित कई नयी परम्पराओं का सू

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नयी दिल्ली: भारत के संसदीय इतिहास में वर्ष 2017 को कई मामलों में एक स्मरणीय साल के रूप में याद रखा जाएगा क्योंकि इस साल रेल बजट को आम बजट में मिला देने, आम बजट को नये वित्त वर्ष से पहले ही पारित करने तथा मध्य रात्रि को केन्द्रीय कक्ष में जीएसटी कानून लागू करने सहित कई नयी परम्पराओं का सूत्रपात किया गया। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस साल बजट प्रक्रिया में कई ऐसे बदलाव किये जो इतिहास में दर्ज किये जाएंगे। इन बदलावों के पीछे यही मूल उद्देश्य था कि वित्त वर्ष समाप्त होने से पहले ही नये वित्त वर्ष का आम बजट पारित करा लिया जाए ताकि तीन माह के लिए संसद से अनुदान की अनुपूरक मांगें पारित कराने की आवश्यकता को समाप्त किया जा सके। साथ ही नये वित्त वर्ष में बजट पारित होने से सरकारी योजना को धन राशि नये वित्त वर्ष से ही मिलने में कठिनाई नहीं आये। 

रेल बजट और आम बजट एक साथ
बजट प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के कारण इस साल बजट सत्र 31 जनवरी से ही शुरू हो गया जो प्राय: फरवरी के तीसरे सप्ताह में शुरू होता था। केन्द्रीय कक्ष में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के पारंपरिक अभिभाषण से शुरू हुये इस बजट सत्र के दौरान एक फरवरी को वित्त मंत्री ने आम बजट पेश किया। वह इसलिए अनूठा रहा क्योंकि उसमें रेल बजट भी सम्मिलित था। अभी तक संसद में रेल बजट और आम बजट अलग अलग पेश किया जाता था लेकिन इस बार करीब नौ दशक पुरानी परम्परा से अलग हटते हुए रेल बजट को सामान्य बजट में ही शामिल कर दिया गया। बजट सत्र दो चरणों ... 31 जनवरी से नौ फरवरी तक तथा नौ मार्च से 12 अप्रैल तक चला। इसमें सात बैठकें पहले चरण में और 22 बैठकें दूसरे चरण में हुईं। सत्र में आम बजट के अलावा माल एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित चार महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये। 

मध्य रात्रि को जीएसटी लागू
संसद के ऐतिहासिक केन्द्रीय कक्ष में 30 जून-एक जुलाई की मध्य रात्रि में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रात्रि बारह बजे घंटा बजाकर देश में जीएसटी लागू करने की घोषणा की। कार्यक्रम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं वित्त मंत्री अरूण जेटली ने संबोधित करते हुए कहा, जीएसटी के माध्यम से पूरे देश में ‘एक कर’ लागू होगा। हालांकि कांग्रेस ने जीएसटी लागू करने के तरीके का विरोध करते हुए इस कार्यक्रम में भाग नहीं लिया। 

नए राष्ट्रपति का शपथग्रहण
मानसून सत्र 17 जुलाई से 11 अगस्त तक चला। इस सत्र के दौरान ही 25 जुलाई को रामनाथ कोविंद को भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे एस खेहर ने भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलवायी। 11 अगस्त को एम वेंकैया नायडू ने उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली। भारत छोड़ो आंदोलन की नौ अगस्त को 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर संसद के दोनों सदनों में विशेष चर्चा के बाद एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस दौरान भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (सार्वजनिक निजी भागीदारी ) विधेयक, निशुल्क और बाल शिक्षा का अधिकार (संशोधन) विधेयक सहित कई विधेयक पारित किये गये।
 
देर से शुरू हुआ शीतकालीन सत्र
वर्तमान में संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा है जो 15 दिसंबर से शुरू हुआ और यह पांच जनवरी तक चलेगा। गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में आम चुनावों के कारण इस सत्र को आहूत करने में कुछ विलंब हुआ क्योंकि आम तौर पर शीतकालीन सत्र नवंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में बुलाया जाता है। पीआरएस लेजिस्टिव रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार बजट सत्र में लोकसभा की उत्पादकता 108 प्रतिशत और राज्यसभा की 86 प्रतिशत रही। इसी प्रकार मानसून सत्र में यह उत्पादकता क्रमश: 67 प्रतिशत और 72 प्रतिशत रही। यदि वर्तमान शीतकालीन सत्र पर नजर डाली जाए तो अभी तक यह आंकड़ा क्रमश: 50 और 36 प्रतिशत रहा। 

कुछ बिल पारित हुए कुछ लटके
वर्ष 2017 के दौरान दोनों सदनों से पारित हुए विधेयकों में एचआईवी एवं एड्स (नियंत्रण एवं रोकथाम) विधेयक, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, बैंकिंग नियमन (संशोधन) विधेयक, कंपनी (संशोधन) विधेयक, भारतीय प्रबंधन संस्थान विधेयक, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (दूसरा संशोधन) विधेयक शामिल हैं। राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने संबंधी विधेयक को हालांकि दोनों सदनों की मंजूरी मिल चुकी है किन्तु राज्यसभा में इस विधेयक पर विपक्ष का एक संशोधन पारित होने के कारण यह विधेयक लटक गया है। सरकार के पास इसे लोकसभा से दोबारा पारित करवाने अथवा इस बारे में नया विधेयक लाने, दोनों का विकल्प है। 

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