नई दिल्ली. साल 2021 की होने वाली जनगणना में बिहार के नेता केंद्र सरकार से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। इस मांग पर बिहार की राजनीति में एक दूसरे के कट्टर विरोधी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव भी एक साथ स्वर मिला रहे हैं। इन दोनों ने आज 11 सदस्यों के साथ राजधानी नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर जातीय जनगणना की मांग की।
गौर करने वाली बात ये है कि प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए बिहार से जो प्रतिनिधिमंडल आया था उसमें भारतीय जनता पार्टी के नेता भी शामिल था। बड़ा सवाल उठता है कि आखिर जातीय जनगणना के मुद्दे में ऐसा क्या है जिसने बिहार की राजनीति में एक दूसरे के कट्टर विरोधियों को भी एक साथ एक मंच पर खड़ा कर दिया है?
इस सवाल का जवाब सरकारी नौकरियों तथा शिक्षण संस्थानों में मौजूदा आरक्षण व्यवस्था हो सकती है, देश में मौजूदा आरक्षण नीति को देखें तो सरकारी नौकरियों में 15 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति (SC) के लिए है और 7.5 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए, इसके अलावा 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए है और 10 प्रतिशत आरक्षण समाज के हर वर्ग से निम्न आय वर्ग के लोगों के लिए है। जातीय आधार पर देखें तो मुख्य तौर पर SC, ST तथा OBC आरक्षण व्यवस्था ही है।
OBC से जुड़ी राजनीति करने वाले राजनीतिक दल हमेशा से मानते आए हैं कि देश की जनसंख्या में सबसे ज्यादा OBC हैं और इसीलिए सबसे ज्यादा आरक्षण OBC के लिए ही तय किया गया है, लेकिन OBC से जुड़ी राजनीति करने वाले राजनितिक दल यह भी हमेशा से कहते आए हैं कि OBC को जितना आरक्षण मिला हुआ है, उसके मुकाबले उनकी जनसंख्या ज्यादा है और इस लिहाज से OBC को मिलने वाले आरक्षण को 27 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ाया जाना चाहिए।
बिहार की राजनीति लड़ाई कई बार जातीय आधार पर होती रही है, बिहार के विधानसभा चुनावों में खुले तौर पर जातीय आधार पर वोट मांगे जाते रहे हैं और वहां पर कई राजनीतिक दल OBC के तहत आने वाली अलग अलग जातियों के प्रतिनिधित्व का दावा करते आए हैं। अब बिहार के रानीतिक दल एक होकर केंद्र सरकार से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं और उनके दावे के तहत अगर OBC के तहत आने वाली जातियों की संख्या ज्यादा होती है तो भविष्य में OBC की आरक्षण सीमा को बढ़ाने की मांग भी उठ सकती है। हालांकि अभी तक केंद्र सरकार ने जातीय आधारित जनगणना को लेकर रुख साफ नहीं किया है।
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