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पहले होते रहे एक साथ चुनाव तो अब क्यों है वन नेशन-वन इलेक्शन से इंकार?

पीएम मोदी के एकसाथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के एजेंडे का ओडिशा के सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने जोरदार समर्थन किया है। बीजू जनता दल का तो कहना है कि वो 2004 से ही इसे अमल में कर लिया है।

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नई दिल्ली: देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। प्रचंड बहुमत से दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब अपने इसी एजेंडे पर जुट गए हैं। उन्होंने इसी सिलसिले में आज तमाम दलों के अध्यक्षों की बैठक बुलाई है लेकिन कांग्रेस और ममता बनर्जी की तृणमूल समेत कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देश में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी एकसाथ कराए जाएं जिससे धनबल के साथ-साथ जन-बल की भी बचत होगी।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए कहा जा रहा है कि एक साथ चुनाव होने से करदाताओं के पैसे बचेंगे और इन पैसों का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए किया जाएगा। साथ ही यह भी तर्क दिया जा रहा है कि राज्यों में बार-बार विधानसभा चुनाव कराया जाना भारत के विकास की कहानी के लिए एक बड़ी बाधा है लेकिन विरोधी पीएम मोदी के इन तर्कों से इत्तेफाक रखते नहीं दिख रहे हैं।

पहले होते रहे हैं एक साथ चुनाव

  • 1952 में लोकसभा-विधानसभा के पहले चुनाव एक साथ हुए
  • 1957, 1962, 1967 में केंद्र-राज्यों के चुनाव साथ हुए
  • क्षेत्रीय दलों के उभरने से संतुलन बिगड़ गया
  • राज्यों में मध्यावधि चुनाव की शुरुआत हुई
  • 1971 में पहली बार लोकसभा का मध्यावधि चुनाव
  • इंदिरा गांधी ने लोकसभा का मध्यावधि चुनाव कराया
  • 1971, 1984 में कांग्रेस ने लोकसभा एक साल पहले भंग की
  • 1980, 1991, 1998, 1999 में भी लोकसभा पहले भंग 
  • 1999 में विधि आयोग की 5 साल में साथ चुनाव कराने की सलाह

सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने का फैसला किया है तो ममता बनर्जी भी विरोध में इस बैठक में शामिल नहीं होने का ऐलान कर चुकी हैं। मंगलवार को कांग्रेस की अगुवाई में विरोधी दलों की हुई बैठक में फैसला लिया गया है कि वो वन नेशन वन इलेक्शन का सैद्धांतिक तौर पर विरोध करेंगे। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस की तरफ से कहा ये गया है कि आज आप एक देश एक चुनाव की बात करेंगे, कल एक देश एक धर्म की बात होगी, फिर एक देश एक पहनावे की बात होगी।

कांग्रेस के अलावा इस मीटिंग में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी शामिल नहीं होगी। एनडीए की पूर्व सहयोगी टीडीपी भी इस बैठक में शामिल नहीं होगी। वहीं एनडीए की सहयोगी शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के भी इस मीटिंग में शामिल नहीं होने की ख़बर है। बीजेपी के सहयोगियों में शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल, जेडीयू के नीतीश कुमार समेत तमाम एनडीए के घटक दलों के प्रमुख शामिल होंगे।

वहीं पीएम मोदी के एकसाथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के एजेंडे का ओडिशा के सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने जोरदार समर्थन किया है। बीजू जनता दल का तो कहना है कि वो 2004 से ही इसे अमल में कर लिया है। बीजेडी प्रवक्ता पिनाकी मिश्रा ने कहा, “2004 में जब हमारी विधानसभा के एक साल बचे हुए थे, तब हमने विधानसभा का चुनाव एक साल पहले करवाया था जिससे कि लोकसभा के साथ ये चुनाव भी हो सके। तब से 2009, 2014 और 2019 में ओडिशा में दोनों चुनाव साथ-साथ हुए। इससे ओडिशा को काफी फायदा हुआ।“

वन नेशन, वन इलेक्शन पर पार्टियों की अलग-अलग राय के बावजूद कई दलों ने इस बैठक में शामिल होने पर हामी भरी है। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के टी रामा राव बैठक में शामिल होंगे। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव और एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी बैठक में शामिल होने की बात कही है। एक देश-एक चुनाव के मुद्दे को भारतीय जनता पार्टी काफी लंबे समय से उठाती रही है। अपने चुनावी घोषणापत्र में इसका भी वादा किया था। अब देखना है कि पीएम मोदी अपने इस एजेंडे को किस तरह से अमली जामा पहना पाते हैं।

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