एक बाजवा को गले लगाकर दूसरे बाजवा को रास्ते से हटाना चाहते हैं सिद्धू?
अखिर सिद्धू क्यों इस तरह के बयान दे रहे हैं, क्या ये सिर्फ बड़बोलापन है, या फिर सिद्धू ने कुछ और सोच रखा है?
चाहे क्रिकेट की कमेंट्री हो, टेलिविजन पर शायरी हो या फिर राजनीति में भाषणबाजी, पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू हमेशा अपने बड़बोलेपन की वजह से सुर्खियों में रहे हैं। लेकिन इस बार उनका बड़बोलापन उनपर भारी पड़ता हुआ दिख रहा है। पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद सिद्धू ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की जो वकालत की, उसकी वजह से देशभर में उनके खिलाफ विरोध होने लगा और यहां तक की उन्हें टेलिविजन का शो भी छोड़ना पड़ गया।
अखिर सिद्धू क्यों इस तरह के बयान दे रहे हैं, क्या ये सिर्फ बड़बोलापन है, या फिर सिद्धू ने कुछ और सोच रखा है? ये सवाल तब उठ रहा है जब सिद्धू के पिछले ढाई साल के राजनीतिक सफर में कई उतार चढ़ाव देखे गए।
करीब ढाई साल पहले सिद्धू भारतीय जनता पार्टी के सांसद थे और पार्टी के फायर ब्रांड नेता समझे जाते थे। लेकिन, उस समय पंजाब के विधानसभा चुनावों से पहले सिद्धू ने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया और ऐसी अटकलें लगी कि सिद्धू आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। खुद सिद्धू और उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू ने इस बात को माना था कि आम आदमी पार्टी के साथ बातचीत हो रही है, उस समय नवजोत कौर सिद्धू भी पंजाब में भाजपा की विधायक थीं। लेकिन, आम आदमी पार्टी के साथ उनकी बात नहीं बन पायी। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धू खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने की मांग कर रहे थे और आम आदमी पार्टी ने इससे इनकार कर दिया था।
क्योंकि सिद्धू भाजपा छोड़ चुके थे और आम आदमी पार्टी की तरफ से भी दरवाजे बंद हो चुके थे, ऐसे में एक मात्रा विकल्प कांग्रेस ही रह गई थी। लेकिन, सिद्धू के मन में मुख्यमंत्री बनने का जो सपना था वह कांग्रेस में पूरा होने से रहा, क्योंकि राज्य में कांग्रेस पहले ही वरिष्ठ नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुकी थी। लेकिन, फिर भी सिद्धू अपने लिए कांग्रेस से मंत्री पद प्राप्त करने में कामयाब हो गए।
पंजाब में मंत्री बनने के बाद सिद्धू ने सीधे कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का गुणगान शुरू कर दिया। पंजाब के मुख्यमंत्री और पंजाब कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के समर्थन में सिद्धू के बड़बोले मुंह से वैसे फूल नहीं बरसते हैं जैसे शीर्ष नेतृत्व के लिए बरस रहे हैं। वजह साफ है, सिद्धू पंजाब के स्थानीय नेताओं के बजाय सीधे केंद्रीय नेतृत्व के सामने अपनी छवि मजबूत बनाए रखना चाहते हैं। पंजाब में कैप्टन अमेरिंदर सिंह के बाद प्रताप सिंह बाजवा और मनप्रीत बादल जैसे नेताओं की पार्टी में अच्छी पकड़ है। क्योंकि, मनप्रीत बादल अकाली दल छोड़कर आए हैं ऐसे में प्रताप सिंह बाजवा को कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद बड़ा नेता समझा जा सकता है।
लेकिन, अब पार्टी में सिद्धू की एंट्री हो चुकी है तो निश्चित तौर पर इससे बाजवा को कड़ी टक्कर मिल सकती है। कैप्टन अमरिंदर पहले ही कह चुके हैं कि 2017 का विधानसभा चुनाव उनका अंतिम चुनाव है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए भविष्य में पंजाब से बड़ा नेता कौन होगा और कौन भविष्य में पार्टी का मुख्यमंत्री होगा, इसको लेकर आने वाले दिनों में सिद्धू और बाजवा के बीच सीधी टक्कर हो सकती है।
लेकिन, सिद्धू पहले ही बाजवा को रेस में पीछे करते नजर आ रहे हैं। करतारपुर कॉरिडोर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए समझौते को सिद्धू सिर्फ अपने प्रयास की जीत बता रहे हैं। इस समझौते के दम पर वह पंजाब में सिख समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के पूरे प्रयास में हैं। यहां तक कि समझौते के समय उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को भी गले से लगा लिया था।
लेकिन, अब क्योंकि पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं और बातें यहां तक होने लगी कि भारत करतारपुर कॉरिडोर को लेकर सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन, सिद्धू ने फिर से पाकिस्तान के साथ बातचीत की वकालत कर दी। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या सिद्धू एक बाजवा को रास्ते से हटाने के लिए दूसरे बाजवा को गले से लगा रहे हैं?
ब्लॉग लेखक-मनोज कुमार (इंडिया टीवी हिंदी)
ब्लॉग में लिखे गए विचार उनके निजी हैं