ट्रिपल तलाक़: जाने पांच जजों की बैंच ने क्या कहा और क्या था मामला
सुप्रीम कोर्ट ने आज ट्रिपल तलाक़ के मामले में ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए इसे ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया है। सु्प्रीम कोर्ट के पांच जजों की बैंच 2 के मुक़ाबले 3 से इस फ़ैसले पर पहुंची है।
नयी दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज ट्रिपल तलाक़ के मामले में ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए इसे ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया है। सु्प्रीम कोर्ट के पांच जजों की बैंच 2 के मुक़ाबले 3 से इस फ़ैसले पर पहुंची है। पीठ ने कहा कि ट्रिपल तलाक़ ग़ैरक़ानूनी और असंवैधानिक है तथा ये क़ुरान के मूलबूत सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है। पीठ ने 395 पेज में ये फ़ैसला सुनाया है।
एक तरफ जहां चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर ट्रिपल तलाक पर छह महीने तक रोक लगाने के पक्ष में थे और चाहते थे कि सरकार इस मामले में क़ानून बनाए, वहीं जस्टिस कूरियन जोसेफ़, आर.एफ़. नरीमन और यू.यू. ललित का मानना था कि ट्रिपल तलाक़ संविधान का उल्लंघन है।
-बहुमत के आधार पर किए गए फ़ैसले में कहा गया कि ट्रिपल तलाक़ सहित वे तमाम चलन जो क़ुरान के सिद्धांतो के ख़िलाफ़, स्वीकार्य नही हैं।
- तीन जजों ने कहा कि तीन बार तलाक बोलकर तलाक लेने का चलन मनमाना और संविधान के ख़िलाफ़ है जिसे ज़रुर ख़त्म किया जाना चाहिए।
-ट्रिपल तलाक पर छह महीने तक रोक लगाने के पक्षधर चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर ने राजनीतिक दलों से अपने मकभेद बूलकर केंद्र की क़ानून बनाने में मदद करने को कहा।
-चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर ने कहा कि अगर केंद्र छह महीने के अंदर कानून नहीं बनाती है तो ट्रिपल तलाक़ पर कोर्ट का फ़ैसला जारी रहेगा।
- चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर ने आशा व्यक्त की कि केंद्र सरकार क़ानून बनाते समय संबंधित मुस्लिम संगठनों की राय और शरिया क़ानून को ध्यान में रखेगी।
- पीठ में पांचों जज चीफ़ जस्टिस जे.एस. खेहर (सिख), जस्टिस एस. अब्दुल नज़ीर (मुसलमान), जस्टिस कूरियन जोसेफ़ (ईसाई), आर.एफ़. नरीमन (पारसी) और यू.यू. ललित (हिंदू) अलग अलग धर्मों से आते हैं। इन्होंने इस मामले में कुल सात याचिकाओं पर सुनवाई की जिसमें पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं की थीं जिन्होंने ट्रिपल तलाक की परंपरा को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि ट्रिपल तलाक़ असंवैधानिक है।
- महिला याचिकाकर्ताओं ने उस ट्रिपल तलाक़ के चलन को चुनौती दी थी कि जिसमें पति एक बार में तलाक, तलाक़, तलाक़ बोलकर या फिर फ़ोन या संदेश भेजकर तलाक़ लेते हैं।
- सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि मुसलमानों में ट्रिपल तलाक़ शादी ख़त्म करने का सबसे "बुरा" चलन है हालंकि कुछ मुस्लिम संगठन इसे "क़ानूनी" मानते हैं।
-केंद्र सरकार ने इसके पहले बैंच से कहा था कि अगर कोर्ट ट्रिपल तलाक़ को अवैध और असंवैधानिक क़रार देता है तो वो मुस्लिम समुदाय में शादी और तलाक़ के लिए क़ानून बनाएगी।
- सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तलाक़ के तीनों फ़ॉर्म्स- तलाक़-बिद्दत, तलाक़ हसन और तलाक़ एहसन को "एक तरफ़ाl" और "अतिरिक्त न्यायिक" बताया था। उसने कहा है कि तमाम पर्सनल लॉज़ को संविधान के दायरे में होने चाहिए। इसी तरह शादी, तलाक़, संपत्ति और उत्तराधिकारी के अधिकार भी संविधान के दायरे में होने चाहिए।
-केंद्र ने कहा था कि ट्रिपल तलाक़ न तो इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है और न ही ये "बहुसंख्यक बनाम अलपसंख्यक" का मुद्दा है। ये मुस्लिम समुदाय के भीतर "मुस्लिम पुरुषों और वंचित महिलाओं के बीच रस्साकशी" का मामला है।