बिहार चुनाव: बड़े चेहरे जो बिगाड़ सकते है चुनावी खेल
नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा की जोरदार तैयारियां चल रही हैं। हर पार्टी ताबड़तोड़ रैलियों के जरिए जनता जनार्दन को रिझाने की पूरी कोशिश कर रही है। बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका
उपेंद्र कुश्वाहा-
उपेंद्र कुश्वाहा ने अपना राजनीतिक करियर सील 1985 में शुरु किया। वो बिहार की युवा लोकदल पार्टी के महासचिव थे..इसके बाद साल 1988 में वो युवा जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। साल 1993 तक वो लगातार इस पद पर बने रहे। इसके बाद वो समता पार्टी से जुड़े और वो साल 2002 तक समता पार्टी के महासचिव रहे।
साल 2000 के विधानसभा चुनाव में वो समता पार्टी के बैनर तले मैदान में कूदे और उन्हें राज्य की विधानसभा में उपनेता का दर्जा हासिल हुआ। इसी दौरान प्रतिपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी को साल 2004 में लोकसभा के लिए चुन लिया गया। समता पार्टी का जनता दल में विलय हो गया जो बाद में जनता दल (यू) में तब्दील हो गई और जद(यू) के सदस्य बीजेपी की संख्या से काफी ज्यादा हो गए। इस वजह से कुश्वाहा बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गए और उन्होंने यह जिम्मेदारी साल 2005 तक संभाली। ऐसा माना जाता है कि जदयू नेता नीतीश कुमार ने कुश्वाहा को नेता प्रतिपक्ष बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि कुछ दिनों बाद नीतीश के साथ उनके मतभेद सामने आ गए और वो जदयू छोड़ एनसीपी से जुड़कर पार्टी के स्टेट प्रेसिडेंट बन गए। वो दोबारा जदयू से जुड़े और साल 2010 में राज्यसभा के एमपी बने। नीतीश कुमार के साथ उनके संबंध ज्यादा दिनों तक मधुर नहीं रहे। उन्होंने फिर से जदयू छोड़ दी और उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया।
साल 2013 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया और समाज के उस पिछड़े वर्ग को साथ लाने की कोशिश की जो लालू प्रसाद और नीतीश कुमार से खफा है। साल 2014 का लोकसभा चुनाल रालोसपा ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। वो कराकट सीट से सांसद चुने गए, उन्हें केंद्र के अहम मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया।
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