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बिहार चुनाव: बड़े चेहरे जो बिगाड़ सकते है चुनावी खेल

नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा की जोरदार तैयारियां चल रही हैं। हर पार्टी ताबड़तोड़ रैलियों के जरिए जनता जनार्दन को रिझाने की पूरी कोशिश कर रही है। बिहार चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका

जीतन राम मांझी

जीतन राम मांझी ने साल 1980 में कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की थी। वो बिहार के गया जिले की फतेहपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए और वो चंद्र शेखर की सरकार में मंत्री भी  बने। उन्होंने साल 1985 में इसी सीट से दोबारा जीत हासिल की। साल 1980 से 1990 तक वो बिंदेश्वरी दुबे, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा की सरकार में मंत्री रहे।

1990 और 1995 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर उन्हें विधानसभा चुनाव में फतेहपुर सीट से हार का सामना करना पड़ा। साल 1995 में उन्होंने जनता दल का दामन थाम लिया। जनता दल में बिखराव हुआ और साल 1996 में लालू प्रसाद यादव ने आरजेडी का गठन कर लिया, वो इस पार्टी के साथ हो लिए। वो साल 1996 में हुए चुनाव में बरछटी विधानसभा सीट से चुना गया क्योंकि विधायक भगवती देवी को गया लोकसभा सीट से सांसद चुन लिया गया था। वो लालू प्रसाद के कैबिनेट में वो मंत्री रहे और जब साल 1997 में राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो भी उन्हें मंत्री पद हासिल हुआ था।

साल 2000 के चुनाव में उन्हें एक बार फिर से बरछटी सीट पर जीत हासिल हुई और उन्होंने राबड़ी देवी की कैबिनेट में मंत्री पद हासिल किया। साल 2005 में उन्होंने जदयू का दामन थाम लिया और अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें एक बार फिर से जीत हासिल हुई। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी सरकार में भी उन्हें मंत्री पद हासिल हुआ।

साल 2010 में भी नीतीश सरकार के कार्यकाल में उन्हें मंत्री पद मिला। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने गया सीट से अपनी दावेदारी पेश की लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू की हार के बाद जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन कमान संभालने के कुछ दिन बाद ही मांझी और नीतीश के मतभेद खुलकर सामने आ गए।

करीब 2 महीने की लंबी जद्दोजहद के बाद मांझी को इस्तीफा देना पड़ा और नीतीश कुमार फिर मुख्यमंत्री बने। नीतीश की पार्टी छोड़ने के बाद उन्होंने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) का गठन किया और अब वो भाजपा का दामन थाम चुके हैं।

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