BJP के बागी नेता बन सकते हैं बड़ा सिर दर्द, राजस्थान में आसान नहीं है राह
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बड़ी संख्या में बागी नेताओं को साधना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर होगा।
जयपुर: पिछले 5 वर्ष में किए गए विकास कार्यों के दम पर राजस्थान की सत्ता में फिर से वापसी का दावा कर रही भाजपा के लिए राहें उतनी आसान नहीं होंगी क्योंकि मानवेंद्र सिंह, घनश्याम तिवाड़ी, हनुमान बेनीवाल और किरोड़ी सिंह बैंसला जैसे बागी नेता उसकी जीत के रास्ते में बड़ा रोड़ा बन सकते हैं। भाजपा समर्थकों को भी डर है कि बागी हुए ये नेता आने वाले विधानसभा चुनाव में राजनीतिक समीकरण बिगाड़ सकते हैं और पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि राज्य में पार्टी के नेताओं को ऐसा नहीं लगता।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि चाहे राजपूत हों या गुर्जर, ब्राह्मण हों या जाट, राजस्थान की सियासत में अहम माने जाने वाला शायद ही कोई समुदाय है जिसमें भाजपा के बागी नहीं हैं। विशेषकर पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से नाराजगी के कारण इन समुदायों के कई बड़े नेता बगावती तेवर अख्तियार कर चुके हैं।
सत्ताधारी भाजपा के बागी नेताओं की फेहरिस्त में सबसे नया नाम राजपूत समुदाय के मानवेंद्र सिंह जसोल का है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे और शिव से विधायक मानवेंद्र ने इसी महीने पार्टी छोड़ दी। ‘राजपूतों के स्वाभिमान’ को मुद्दा बनाकर भाजपा से अलग हुए मानवेंद्र लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं जबकि उनकी पत्नी विधानसभा चुनाव में शिव से ताल ठोक सकती हैं। राजपूत समुदाय भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। भैरोंसिंह शेखावत इस समुदाय का बड़ा नाम हैं, जो दो बार मुख्यमंत्री बने और इस समुदाय के वोटरों को पार्टी से जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई। राज्य की 50 से अधिक सीटों के परिणाम राजपूत मतदाता प्रभावित करते हैं ऐसे में मानवेंद्र और अन्य राजपूत नेताओं की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है।
इसी तरह, छह बार से विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने भी भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा की हुई हैं। आरएसएस विचारक, ब्राह्मण नेता और लंबे समय तक भाजपा से जुड़े रहे तिवाड़ी ने पार्टी से किनारा कर भारत वाहिनी पार्टी बना ली है। उन्होंने खुद सांगानेर से चुनाव लड़ने की घोषणा की है जबकि उनकी पार्टी हनुमान बेनीवाल जैसे अन्य बागियों से मिलकर ‘भाजपा सरकार के कुशासन से लड़ना चाहती है।’ राज्य के सवर्ण मतदाताओं में सबसे बड़ा हिस्सा ब्राह्मणों का है, लेकिन देखना यह है कि इनमें से कितनों को तिवाड़ी और उनके सहयोगी तोड़ पाते हैं।
साल 2008 में भाजपा के टिकट पर खींवसर से विधायक चुने गए हनुमान बेनीवाल भी बागी हो गए हैं। प्रदेश नेतृत्व से मतभेदों के चलते वह भी पार्टी छोड़ चुके हैं। वह नागौर और शेखावटी के कई जाट बहुल जिलों में भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक पर बागियों के असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा,‘हम भाजपा को राज्य में तीसरे नंबर पर धकेल देंगे।’ भाजपा से बागी हुए लोगों में किरोड़ी लाल मीणा भी एक बड़ा नाम हैं। हालांकि, पार्टी उन्हें मनाने में सफल रही और वह वापस आ गए।
इसी तरह, किरोड़ी सिंह बैंसला के तेवर भी बागी हो चले हैं। साल 2008 में गुर्जर सहित पांच जातियों को रोजगार एवं शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर चर्चा में आए इस गुर्जर नेता ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से उनके रिश्ते अच्छे नहीं माने जा रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से अधिक गुर्जर विधायक बने थे। बैंसला ने हाल ही में भरतपुर संभाग में मुख्यमंत्री राजे की गौरव यात्रा बाधित करने की धमकी दी थी। हालांकि तभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के कारण यात्रा का वह चरण रद्द हो गया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में बागी नेताओं को साधना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर होगा। हालांकि शहरी विकास एवं आवासीय मंत्री श्रीचंद कृपलानी इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने भाषा से कहा, ‘भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है नेताओं की नहीं। यहां नेता महत्व नहीं रखते और इस तरह जाने वालों (बागियों) से पार्टी पर कोई असर नहीं होगा।’