A
Hindi News भारत राजनीति राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश कुमार की दो नावों की सवारी और संतुलन बनाने की कोशिश

राष्ट्रपति चुनाव: नीतीश कुमार की दो नावों की सवारी और संतुलन बनाने की कोशिश

मीरा उसी राज्य बिहार से हैं और दलित हैं जहां नीतीश वर्ष 2005 से शासन करते आ रहे हैं, तब से वे यहां से बस नौ माह के लिए दूर रहे। कोविंद को नीतीश का समर्थन उनके द्वारा हाल में उठाए गए उन हैरत भरे कदमों में से एक है जिसने उनके दल को राष्ट्रीय जनतांत्रिक

Nitish Kumar- India TV Hindi Nitish Kumar

नयी दिल्ली: एक ओर जहां विपक्ष के नेता मिल बैठकर राष्ट्रपति पद के चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं वहीं उनमें एक व्यक्ति की गैर मौजूदगी कुछ और ही कहानी कह रही है। ये हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिनका संदेश स्पष्ट है। जदयू अध्यक्ष किसी के इशारे पर नहीं चलते बल्कि वही करते हैं जो उनके मुताबिक उनकी पार्टी के लिए सही है। विपक्ष के कुछ नेताओं ने कल नीतीश से बात की, जिनके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन :राजग : के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को समर्थन देने के फैसले से कई लोग खफा हैं। हालांकि राष्ट्रीय जनता दल :आरजेडी: के नेता लालू प्रसाद यादव ने वादा किया है कि वे विपक्ष की उम्मीदवार मीरा कुमार को समर्थन देने के लिए नीतीश को मना लेंगे। ये भी पढ़ें: कैसे होता है भारत में राष्ट्रपति चुनाव, किसका है पलड़ा भारी, पढ़िए...

मीरा उसी राज्य बिहार से हैं और दलित हैं जहां नीतीश वर्ष 2005 से शासन करते आ रहे हैं, तब से वे यहां से बस नौ माह के लिए दूर रहे। कोविंद को नीतीश का समर्थन उनके द्वारा हाल में उठाए गए उन हैरत भरे कदमों में से एक है जिसने उनके दल को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन विरोधी गुट से अलग थलग कर दिया है। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा, वे समय समय पर ऐसे विरोधाभासी फैसले लेते हैं जो उन्हें लगता है कि जनहित में हैं।

66 वर्षीय समाजवादी नेता 17 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में धारा के विपरीत जा रहे हैं, यह बात पिछले महीने तभी साफ हो गई थी जब वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा आयोजित विपक्ष के भोज में शामिल नहीं हुए थे जिसमें इस मुद्दे पर चर्चा होनी थी। यही नहीं, इसके अगले दिन वे मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित भोज में शामिल हुए। मुख्यमंत्री ने साारूढ़ राजग को ऐसे मुद्दों पर समर्थन दिया है जिनकी विपक्ष ने आलोचना की, मसलन पिछले वर्ष अक्तूबर माह में पाकिस्तानी जवानों पर सेना का हमला और नवंबर में उच्च मूल्य वाले करंसी नोटों पर प्रतिबंध का राजग का फैसला।

भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल होने के लिए पहले उन्होंने गैर-राजग समूह का साथ छोड़ा और फिर वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राजग का साथ छोड़ उसके खिलाफ महागठबंधन बनाया। वर्ष 2012 के राष्ट्रपति पद के चुनाव में उन्होंने तत्कालीन गठबंधन सहयोगी राजग को तब हैरत में डाल दिया था जब उन्होंने राजग के उम्मीदवार पीए संगमा के खिलाफ संप्रग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन दिया था। बताया जाता है कि ऐसा उन्होंने मुखर्जी के साथ व्यक्तिगत संबंध होने के कारण किया था। हालांकि कोविंद को समर्थन देने के मामले में, इसकी वजह जातिगत राजनीति हो सकती है। गौरतलब है कि बिहार में महादलित मतदाता बड़ी संख्या में हैं।

राजद विधायक भाई बीरेंद्र ने कहा, नीतीश को अपनी पार्टी या गठबंधन से कोई लेनादेना नहीं है। वे वही करते हैं जो उनके निजी राजनीतिक हित के लिए अच्छा होता है। विधायक का यह कहना उन अटकलों को मजबूती देता है जिनमें कहा जाता है कि जदयू और राजद के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। कल, लोजपा नेता रामविलास पासवान ने नीतीश से कहा था कि वह एक ही समय में दो नावों की सवारी ना करें और राजग में शामिल हो जाएं। लेकिन ऐसा लगता है कि बिहार के मुख्यमंत्री जब तक चाहेंगे, यही सवारी करते रहेंगे।

ये भी पढ़ें: 500 रुपए में बनवाइए इंटरनेशनल ड्राइविंग लाइसेंस, दुनिया में कहीं भी चलाइए कार
भारत के लिए एससीओ की सदस्यता मिलने के क्या हैं मायने?

Latest India News