महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन, कांग्रेस-एनसीपी ने कहा-'शिवसेना को समर्थन देने के प्रस्ताव पर अभी कोई फैसला नहीं'
महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध के बीच मंगलवार शाम राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केन्द्र को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा हालात में राज्य में स्थिर सरकार के गठन के तमाम प्रयासों के बावजूद यह असंभव प्रतीत होता है।
नयी दिल्ली/मुंबई: महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिरोध के बीच मंगलवार शाम राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने केन्द्र को भेजी गयी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा हालात में राज्य में स्थिर सरकार के गठन के तमाम प्रयासों के बावजूद यह असंभव प्रतीत होता है। हालांकि उनके इस फैसले की गैर-भाजपा दलों ने खुलकर आलोचना की है। इस बीच एनसीपी ने कल विधायको्ं की बैठक बुलाई है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव परिणाम की घोषणा के 19वें दिन जारी राजनीतिक गतिरोध के बीच कांग्रेस-राकांपा ने कहा कि उन्होंने सरकार बनाने के लिए शिवसेना को समर्थन देने के प्रस्ताव पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। शिवसेना की ओर से दोनों दलों को यह प्रस्ताव सोमवार को मिला है और वह अभी इस पर विचार करना चाहते हैं। कांग्रेस नेताओं के साथ राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दोनों दल विचार- विमर्श कर एक आम सहमति बनाने का प्रयास करेंगे कि यदि शिवसेना को समर्थन देना है तो नीतियां और कार्यक्रमों की रूपरेखा कैसी होनी चाहिए।
न्यूनतम कार्यक्रम तय हुए बगैर कोई अंतिम फैसला नहीं
संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस नेताओं अहमद पटेल, मल्लिकार्जुन खड़गे और के सी वेणुगोपाल ने भी शिरकत की। इन नेताओं को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मुद्दे पर राकांपा से बातचीत के लिए भेजा था। कांग्रेस-राकांपा की बैठक के बाद कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने कहा कि तीनों दलों के बीच साझा न्यूनतम कार्यक्रम तय हुए बगैर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया जा सकता। उन्होंने राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की आलोचना करते हुए कहा कि कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका नहीं दिया गया। इससे पूर्व आज दिन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में राज्यपाल कोश्यारी की सिफारिश पर विचार करने के बाद उसे संस्तुति के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा।
‘राज्य में स्थिर सरकार का गठन असंभव
कैबिनेट ने अपनी सिफारिश में कहा कि राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 356(1) के तहत महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा करें और राज्य विधानसभा को निलंबित अवस्था में रखें। अधिकारियों ने बताया, ‘‘राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उद्घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।’’ अपनी रिपोर्ट में राज्यपाल ने कहा था कि राज्य में ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जिनमें ‘‘राज्य में स्थिर सरकार का गठन असंभव हो गया है।’’ राज्यपाल ने कहा है कि उन्होंने उन सभी दलों से संपर्क किया जो अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर गठबंधन में सरकार बनाने की क्षमता रखते थे, लेकिन उनके सभी प्रयास विफल रहे।
संविधान के दायरे में रहते हुए अब सरकार बनाना संभव नहीं
राज्यपाल कार्यालय ने ट्वीट किया है, ‘‘उन्हें विश्वास है कि संविधान के दायरे में रहते हुए अब सरकार बनाना संभव नहीं है? इसलिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों के तहत आज रिपोर्ट सौंप दी है।’’ गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भाजपा ने बहुमत नहीं होने का हवाला देते हुए सोमवार को सरकार बनाने का दावा पेश करने से इंकार कर दिया। उसके बाद राज्यपाल ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना को दावा पेश करने का न्योता दिया। शिवसेना ने हालांकि राज्यपाल से मिलकर दावा किया कि उसे कांग्रेस और राकांपा का सैद्धांतिक समर्थन मिल चुका है लेकिन वह दोनों दलों का समर्थन पत्र पेश करने में नाकाम रही। शिवसेना ने राज्यपाल से ऐसा करने के लिए तीन दिन का वक्त मांगा लेकिन उसका अनुरोध स्वीकार नहीं किया गया। इसके बाद राज्यपाल कोश्यारी ने तीसरी सबसे बड़ी पार्टी राकांपा (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) को सरकार बनाने का दावा पेश करने का न्योता दिया। उन्होंने राकांपा को मंगलवार रात साढ़े आठ बजे तक का समय दिया था।
सरकार के गठन के हालात बनने पर राष्ट्रपति शासन हटाया जा सकता है
राज्यपाल ने केन्द्र को भेजी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि मंगलवार सुबह राकांपा ने उन्हें संदेश भेजा कि पार्टी को उचित समर्थन जुटाने के लिए और तीन दिन का वक्त चाहिए। अधिकारियों ने बताया, राज्यपाल को लगा कि चुनाव परिणाम आए पहले ही 15 दिन गुजर गए हैं और वह ज्यादा वक्त देने की स्थिति में नहीं हैं। अधिकारियों ने कहा कि अगर राज्य में स्थिर सरकार के गठन के हालात बनते हैं तो राष्ट्रपति शासन छह महीने से पहले ही हटाया जा सकता है। पिछले महीने हुए विधानसभा चुनाव में कुल 288 सदस्यीय सदन में से भाजपा के हिस्से में 105 सीटें आयी थीं जबकि शिवसेना को 56, राकांपा को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं। सत्ता में साझेदारी को लेकर नाराज शिवसेना ने भाजपा के बिना राकांपा-कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का प्रयास किया। लेकिन ऐसा नहीं होने पर पार्टी मंगलवार को उच्चतम न्यायालय पहुंच गयी।
शिवसेना की अर्जी पर तत्काल सुनवाई से इंकार
शिवसेना ने अपनी अर्जी में राज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए मामले की तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया। हालांकि न्यायालय ने इस पर तत्काल सुनवाई से इंकार करते हुए पार्टी के वकीलों से कहा कि वे बुधवार की सुबह प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के समक्ष इस मुद्दे को रखें। शिवसेना की ओर से अर्जी देने वाली अधिवक्ता सुनील फर्नांडिस ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने बुधवार सुबह साढ़े दस बजे हमें न्यायालय के समक्ष अर्जी देने को कहा है।’’ उन्होंने कहा कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को चुनौती देने के लिए दूसरी याचिका तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा, ‘‘उसे कब दाखिल किया जाए, इस पर फैसला कल होगा।’’ इस अर्जी में पार्टी ने राज्यपाल के फैसले को ‘‘असंवैधानिक, अतार्किक, भेदभावपूर्ण, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण बताया है।’’
संवैधानिक परंपराओं का उल्लंघन: कांग्रेस
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी राज्यपाल और भाजपा-नीत केन्द्र पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने लोकतंत्र के साथ ना सिर्फ ‘कटु मजाक’ किया है बल्कि अपने कदमों से संवैधानिक परंपराओं का उल्लंघन भी किया है। उन्होंने भाजपा, शिवसेना और राकांपा को सरकार के गठन के लिए मनमाने तरीके से वक्त देने के लिए राज्यपाल की आलोचना की। सुरजेवाला ने कहा, ‘‘राज्यपाल और दिल्ली में बैठे शासकों ने महाराष्ट्र के किसानों और आम जनता के साथ बहुत नाइंसाफी किया है।’’ राज्यपाल की रिपोर्ट पर उन्होंने कहा, यह बेहद बेईमानी भरा और राजनीति से प्रेरित है।