सचमुच, ‘किंग’ साबित हुए कुमारस्वामी, दिलचस्प है राजनीतिक सफर
कुमारस्वामी के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक राजनीति में आ गए क्योंकि उनकी पहली पसंद फिल्में थीं...
बेंगलुरु: कर्नाटक जद(एस) प्रमुख एच डी कुमारस्वामी ने चुनाव से पहले दावा किया था कि वह ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘किंग’ होंगे। उनकी यह बात सही साबित हुई और अपनी पार्टी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मात्र 37 सीटें मिलने के बावजूद वह राज्य के मुख्यमंत्री बने। अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा से मौके का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल अपने पक्ष में करने का गुण सीखने वाले कुमारस्वामी ने आज राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। कांग्रेस के समर्थन से जद(एस) ने कर्नाटक में सरकार बना ली लेकिन खुद कुमारस्वामी यह बात कह चुके हैं कि उनके लिए गठबंधन सरकार चलाना बड़ी चुनौती होगा।
कुमारस्वामी के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक राजनीति में आ गए क्योंकि उनकी पहली पसंद फिल्में थीं। कुमारस्वामी का जन्म हासन जिले के होलेनरसीपुरा तहसील के हरदनहल्ली में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा हासन में हासिल की और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए बेंगलुरू चले आए। विज्ञान विषय में स्नातक करने वाले 58 वर्षीय कुमारस्वामी के लिए राजनीति उनकी पहली रूचि नहीं थी। कन्नड़ अभिनेता डॉ. राजकुमार के प्रशंसक कुमारस्वामी अपने कॉलेज के दिनों में सिनेमा की ओर आकर्षित हुए और इससे वह बाद में फिल्म निर्माण और वितरण के व्यापार में आए। उन्होंने कई सफल कन्नड़ फिल्मों का निर्माण किया है जिसमें निखिल गौड़ा अभिनीत ‘‘जगुआर’‘ शामिल है।
कुमारस्वामी का राजनीति में प्रवेश 1996 में कनकपुरा से लोकसभा चुनाव लड़ने और जीत दर्ज करने से हुआ। 2004 में वह विधानसभा के लिए चुने गए जब जदएस ने त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में कांग्रेस की धर्म सिंह नीत सरकार का समर्थन किया था। इसके बाद 2006 के शुरूआत में कुमारस्वामी ने अपनी पार्टी को खतरा बताते हुए देवेगौड़ा के विरोध के बावजूद सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
कुमारस्वामी ने इसके बाद भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने। पार्टी में उनका कद इस तेजी से बढ़ा कि इससे उनके परिवार में विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय तक उनके बड़े भाई एच डी रेवन्ना को गौड़ा का उत्तराधिकारी माना जाता था। उसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सिद्धारमैया भी यह महसूस करने लगे कि उन्हें किनारे किया जा रहा है। सिद्धारमैया ने कथित असंतुष्ट गतिविधियां शुरू कर दीं जिसके चलते उन्हें जेडिएस से निष्कासित कर दिया गया।
कुमारस्वामी 20-20 महीने सत्ता साझा करने के समझौते का सम्मान करने में असफल रहे जिसके चलते भाजपा 2008 में पहली बार दक्षिण भारत के इस राज्य में सत्ता में आई। जेडीएस उसके बाद सत्ता से बाहर रही। कुमारस्वामी ने हाल में पीटीआई से कहा था कि यह चुनाव उनकी पार्टी के लिए ‘‘अस्तित्व की लड़ाई’’ है। इस लड़ाई में अपनी पार्टी को कर्नाटक की सत्ता पर ला चुके कुमारस्वामी के लिए अब एक नई चुनौती मुंह खोले खड़ी है और वह है पांच साल राज्य में गठबंधन सरकार चलाना।