चौकीदार बनकर आए लोग तानाशाह बन रहे: भूपेश बघेल
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 'गांधी विचार यात्रा' के समापन अवसर पर गुरुवार को किस का नाम लिए बगैर भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार पर बड़ा हमला बोला...
रायपुर: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 'गांधी विचार यात्रा' के समापन अवसर पर गुरुवार को किस का नाम लिए बगैर भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने कहा, "सामाजिक मूल्यों का पैरोकार और चौकीदार बनकर आए लोग अब तानाशाह बनकर सामने आने लगे हैं।" सात दिवसीय राज्यस्तरीय 'गांधी विचार यात्रा' का समापन गुरुवार को रायपुर के उसी मैदान में हुआ, जिसमें महात्मा गांधी 86 साल पहले सन् 1933 में आए थे। इस मौके पर बघेल ने गांधी के राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म की खूबियों को गिनाया।
उन्होंने कहा, "भारत के जनतंत्र में धर्म का आवरण भी है, यहां साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई और जीती गई। धार्मिकता में भी स्वतंत्रता है, राम जन-जन के राम हैं। कबीर ने उन्हें मंदिर से मुक्त कर घट-घट का राम बना दिया और तुलसी ने राम को अवध से मुक्त कर वैश्विक बनाया। अवध वह जगह है, जहां वध न हो, जहां हिंसा न हो। छत्तीसगढ़ के कण-कण में राम है। गांधी ने राम को पंडित और पाखंड से मुक्त किया।"
बघेल ने कहा, "हमने साम्राज्यवाद को भगा दिया, अब पूंजीवाद नए रूप में आ रहा है। नवपूंजीवाद काले धन का भी रास्ता है, उसके लिए मनुष्य और राष्ट्र दोनों बोझ हैं। नकली उच्चता पर खड़े कुछ संगठनों के भी यही विचार हैं। उन्हें अपने हक भीड़ की शक्ल में चाहिए। उन्हें भक्त भीड़ की शक्ल में चाहिए। उन्हें विचारवान मनुष्य की आवश्यकता नहीं है।"
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, "विचारवान मनुष्य सवाल खड़ा करते हैं और इनसे सवाल पूछो तो घबरा जाते हैं और राष्ट्रद्रोह का सार्टिफिकेट बांटते हैं। सवाल आपको मुक्त करता है, सवाल आपको आगे बढ़ाता है, एक नई चेतना से भर देता है, इसलिए इन्हें सवाल करने वाले नहीं, बल्कि भीड़ चाहिए। इसलिए नवपूंजीवाद ने काले धन, उन्माद और धार्मिकता को बड़ी दुकान में बदल दिया है, धर्म को कर्मकांड और चमकीले हाईटेक आयोजन में बदल दिया गया है।"
उन्होंने भाजपा और संघ का नाम लिए बगैर कहा कि काला धन, सांप्रदायिकता और उत्तेजक राष्ट्रवाद के गठजोड़ को समझना होगा, क्योंकि यह गरीब और मेहनतकश लोगों के वर्षो से चली आ रही आस्थाओं के अपहरण का पुरजोर प्रयास कर रही है। इस गठजोड़ के चेहरे से धार्मिकता के नकाब को नोंचकर उनके चेहरे को सामने लाने की आवश्यकता है। यही चेहरा काले धन की मदद से संस्कृति की आड़ में संगठित शक्ति बनने का प्रयास कर रहा है। गांधी की 150वीं जयंती की इस विचार यात्रा में इसको समझना जरूरी है।
बघेल ने आगे कहा, "ऋषि परंपरा के चिंतन से हमारा देश संस्कारित हुआ है, निडर हुआ है, जो किसी से नहीं हारता। हम कृष्ण की पूजा करें, हम राम की पूजा करें, हम घर में रहें, हम नास्तिक हों या अस्तिक, फिर भी हम हिंदू हो सकते हैं। यह इतना विस्तार हमारे समाज में हमारे संत महात्माओं ने दिया है। हमारी धार्मिकता हमें ऐसी आजादी और निडरता देती है। हम मानें या ना मानें, यह निडरता केवल हमारा समाज देता है, मगर आज पूंजीवादी, साम्राज्यवादी ताकतें जो कट्टर हैं व धार्मिक चोला पहनकर आई हैं, उसे पहचानने की जरूरत है।"
उन्होंने कहा कि कुछ लोग सामाजिक और नैतिक मूल्यों के पैरोकार और हिमायती बनकर आते हैं, अपने को चौकीदार बताते हैं और अंत में तानाशाह बनकर सामने आ रहे हैं, यह सब अपने को घोषित पहरेदार बताकर जनमानस को आतंक तक ले जाते हैं। बघेल ने कहा, "आज गांधी को दुनिया क्यों याद कर रही है? गांधी को दुनिया में इसलिए याद नहीं किया जा रहा कि उन्होंने भारत को आजाद कराया, बल्कि इसलिए याद किया जा रहा है कि उन्होंने भारत को तो आजाद कराया ही, मगर इसके लिए जो अहिंसा का रास्ता अपनाया, वह किसी ने नहीं अपनाया था।"
कांग्रेस नेता ने कहा, "महात्मा गांधी को अहिंसा पर अटूट विश्वास था। सवाल है कि क्या अहिंसा महात्मा गांधी की खोज है? नहीं। अहिंसा को बुद्ध, महावीर ने अपनाया था, अहिंसा उपनिषद में है, भारत की परंपरा में है। बुद्ध ने अपने और अपने अनुयायियों के लिए अपनाई थी अहिंसा को, मगर गांधी की अहिंसा व्यक्ति के लिए नहीं, आम जनता के लिए थी। इसी अहिंसा को उन्होंने अंग्रेजों की तोप व गोले के सामने खड़ा किया और कामयाब हुए।"
उन्होंने कहा कि गांधी दुबले-पतले थे, लेकिन उन्होंने पशुबल के सामने आत्मबल को खड़ा किया। गांधी का सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास था। गांधी ने अहिंसा, गाय और ध्वज को अपनाया। उन्होंने गंभीर राष्ट्रवाद की बात की। यह गंभीर विमर्श व चिंतन को जन्म देती है। यह सभी धर्मो की अच्छाइयों को अपनाने की प्रेरणा देती है। यह वही राष्ट्रवाद है जो किसानों को उसका हक दिलाती है, नारी को सम्मान दिलाती है, मैला ढोने वालों को उन्होंने सम्मान दिया। गांधी ने सब को जोड़ने का काम किया, यही गांधी का राष्ट्रवाद है।