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संसद की बैठकों की न्यूनतम संख्या की जाए तय

कांग्रेस नेता पी एल पुनिया ने भाषा से की गयी बातचीत में गुजराल के इस निजी विधेयक के प्रावधानों का समर्थन किया। उन्होंने कहा, संसद आखिर है किस लिये।

Minimum number of meetings of Parliament will be decided- India TV Hindi Minimum number of meetings of Parliament will be decided

नयी दिल्ली: संसद में विपक्ष के बार बार के हंगामे के बीच विधायी कार्यों एवं महत्वपूर्ण मुद्दों पर होने वाली चर्चाओं के आए दिन टलने के कारण संसदीय लोकतंत्र की कार्यशैली पर उठने वाले सवालों के बीच अब विभिन्न दलों के कई सांसद भी यह बात महसूस कर रहे हैं कि संसद की बैठकों की न्यूनतम संख्या तय की जानी चाहिए तथा महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए विशेष सत्र बुलवाया जाना चाहिए। शिरोमणि अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने पिछले दिनों राज्यसभा में एक विधेयक रखा जिसमें संसद की न्यूनतम बैठकों की संख्या 100 निर्धारित करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही इसमें संसद के दो सप्ताह लंबे विशेष सत्र को बुलवाने का भी प्रावधान किया गया है।

कांग्रेस नेता पी एल पुनिया ने भाषा से की गयी बातचीत में गुजराल के इस निजी विधेयक के प्रावधानों का समर्थन किया। उन्होंने कहा, संसद आखिर है किस लिये। संसद में चर्चा नहीं होगी तो आखिर हम चर्चा कहां जाकर करें। उन्होंने कहा कि संसद का काम केवल कानून बनाना ही नहीं है। देश की सबसे बड़ी पंचायत में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाना, उन पर चर्चा करना, उस बारे में सरकार की जवाबदेही तय करना तथा उनके समाधान की दिशा में विभिन्न सुझाव देना भी संसद के कार्यों में शामिल है।

पुनिया ने कहा कि संसदीय चर्चाओं में सभी सदस्यों की राय महत्वपूर्ण होती है इसलिए बड़े दलों के साथ साथ छोटे दलों के सदस्यों को उनकी बात रखने का समुचित मौका मिलना चाहिए। भाजपा के राज्यसभा सदस्य भूपेन्द्र यादव ने भी कहा कि संसद का समय बहुत कीमती होता है। इसलिए संसद को बाधित नहीं होना चाहिए और इसमें जितना अधिक काम हो, उतना ही लोकतंत्र के लिए बेहतर साबित होगा। उन्होंने कहा कि संसद के दोनों सदनों में कोई भी सदस्य चर्चा के लिए विभिन्न नियमों के तहत नोटिस दे सकता है। मुद्दों पर सदन में कितनी देर चर्चा होनी चाहिए, इसे तय करने के लिए एक स्थापित प्रक्रिया है। दोनों सदनों की कार्य मंत्रणा समिति यह तय करती है कि किसी विधेयक या मुद्दे पर सदन में कितनी देर चर्चा की जाए। समय के अनुसार ही विभिन्न दलों को उनकी सदस्य संख्या के आधार पर समय आवंटित किया जाता है।

गुजराल के संसद (उत्पादक में बढोतरी) विधेयक के कारणों एवं उद्देश्य में कहा गया है कि 1952 में भारतीय संसद की स्थापना के साथ ही विभिन्न सत्रों के दौरान 100 से 120 बैठकें तक हुआ करती थीं। किन्तु पिछले कुछ दशकों में इस चलन में निरंतर गिरावट आती गयी और यह संख्या घटकर 70 से 80 बैठक रह गयी हैं। इसमें कहा गया कि कम बैठक होने के कारण बड़ा आर्थिक नुकसान होता है, समय की बर्बादी होती है। इससे भी बड़ी बात की लोक महत्व के विभिन्न विषयों पर निर्णय में विलंब होता है तथा कानूनों को बिना चर्चा के जल्दबाजी में पारित कर दिया जाता है। समाज में जिन महत्वपूर्ण मुद्दों की अनुगूंज रहती है, उन पर ध्यान नहीं दिया जा पाता है, अनदेखी हो जाती है या पर्याप्त रूप से चर्चा नहीं हो पाती है।

विधेयक में कहा गया, इन कारणों के चलते संसद की उत्पादकता कम हो रही है तथा कानून निर्माण की इस सर्वोच्च संस्था की प्रासंगिकता को लेकर लोगों के मन में भरोसा धीरे धीरे कम हो रहा है। इसमें संसद की वर्ष भर में न्यूनतम 100 बैठकें करवाने के अलावा दो सप्ताह लंबा विशेष सत्र भी आहूत करने का प्रावधान है। विशेष सत्र में गैर सत्तारूढ़ दलों को चर्चा में अपनी बात रखने का अधिक समय देने का भी प्रावधान किया गया है। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि हंगामे के कारण संसद का जो समय बाधित होता है, उतने समय की भरपाई की जानी चाहिए।

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