नई दिल्ली: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का कहना है कि मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान के साथ वार्ता खारिज करना इस्लामाबाद के साथ उसके संबंध के प्रतिकूल है और यह स्वपराजय के रुख का सूचक है। माकपा ने अपने जर्नल 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' के संपादकीय में कहा, "आतंकवाद का सामना करने के मामले में अपने सख्त रुख पर कायम रहते हुए व्यापक वार्ता बहाल करने की आवश्यकता है।"
माकपा ने कहा, "देश में सांप्रदायिक एजेंडा से प्रेरित पाकिस्तान के साथ रिश्तों में आंख में पट्टी बांधकर चलने का दृष्टिकोण के साथ मोदी सरकार रणनीतिक स्वायत्ता के अपने अवसर को कम कर रही है।"
संपादकीय में कहा गया है कि भारत पाकिस्तान के साथ टकराव की स्थिति रखते हुए चाहे अफगानिस्तान हो या दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में सकारात्मक भूमिका नहीं निभा सकता है।
माकपा ने कहा, "ऐसी स्थिति से न सिर्फ हमारी विदेशी नीति प्रभावित होती है, बल्कि आंतरिक रूप से भी इससे नुकसानदेह प्रतिक्रिया मिलती है, मसलन कश्मीर में हालात बिगड़ना और पंजाब में अतिवाद की वापसी इसके दो स्पष्ट संकेतक हैं।"
माकपा ने भारत से पाकिस्तान के करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब के बीच के गलियारे को खोलने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह दुर्लभतम मिसालों में एक है जब भारत और पाकिस्तान काफी लंबे वक्त की गतिरोध और तनाव के बाद आपसी सहयोग के लिए राजी हुए है।
लेकिन गलियारे को औपचारिक रूप से खोलने के ही दिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस्लामाबाद में होने वाल दक्षेस सम्मेलन में हिस्सा लेने का आमंत्रण यह कहकर ठुकरा दिया कि आतंकी गतिविधियों के साथ-साथ वार्ता नहीं हो सकती। माकपा ने कहा, "इस हठ से पाकिसतन के साथ मोदी सरकार के संबंध के प्रतिकूल व स्वपराजय का रुख जाहिर होता है।"
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