हिमाचल विधानसभा चुनाव: CM कैंडिडेट धूमल की हार के बावजूद इन 5 कारणों से BJP को मिली बड़ी जीत
आइए, आपको बताते हैं उन 5 बड़े कारणों के बारे में, जिनकी वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता से बेदखल कर दिया...
शिमला: हिमाचल प्रदेश की जनता ने एक बार फिर अपने इतिहास को दोहराते हुए वर्तमान सरकार को उखाड़ फेंका है और एक नई सरकार के लिए बहुमत दिया है। रुझानों और नतीजों की बात करें तो अभी तक आए 68 सीटों के रुझानों/नतीजों में बीजपी 42, कांग्रेस 22 और अन्य उम्मीदवार 4 सीटों पर या तो आगे चल रहे हैं या तो जीत दर्ज कर चुके हैं। इस तरह से यह साफ हो गया है कि राज्य में अब बीजेपी ही सरकार बनाएगी। हालांकि बीेजेपी को मिली प्रचंड जीत के बावजूद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल का चुनाव हार जाना पार्टी के लिए बड़ा झटका है। आइए, आपको बताते हैं उन 5 बड़े कारणों के बारे में, जिनकी वजह से भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को एक बार फिर सत्ता से बेदखल कर दिया...
1- वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार आरोप
वीरभद्र सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों ने कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डालने का काम किया। दूसरी ओर कांग्रेस जिस तरह हिमाचल प्रदेश में अंतर्कलह से जूझ रही थी, उसे देखते हुए वीरभद्र का दोबारा सत्ता में वापसी करना किसी चमत्कार से कम नहीं होता। वीरभद्र सिंह प्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के सबसे बड़े चेहरे रहे हैं और उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोपों का लगना पार्टी के लिए भी काफी नुकसानदायक साबित हुआ। कांग्रेस और वीरभद्र सिंह के लिए अच्छी बात यह रही कि इतनी जबर्दस्त ऐंटि-इन्कंबैंसी के बावजूद वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे।
2- नरेंद्र मोदी की सभाएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं ने भी हिमाचल प्रदेश में एक बड़ा अंतर पैदा किया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश में जहां-जहां भी सभाएं कीं, वहां उन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ी, जिसमें से एक बड़ी संख्या बीजेपी के लिए वोटों में भी तब्दील हुई होगी। नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में बीजेपी की बात जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहे, और बीजेपी की प्रचंड जीत में यह भी एक बड़ा फैक्टर रहा।
3- ऐंटि इन्कंबैंसी
हिमाचल प्रदेश का एक ट्रेंड रहा है कि वहां की जनता अमूमन हर 5 साल में सरकार बदल देती है। 1985 के बाद से देखें तो 1985-90 तक जहां कांग्रेस की सरकार रही और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री रहे वहीं 1990-92 तक बीजेपी के शांता कुमार के हाथों में प्रदेश की बागडोर रही। 1993-98 तक एक बार फिर कांग्रेस की सरकार रही और वीरभद्र सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1998-2003 तक बीजेपी, 2003 से 2007 तक कांग्रेस, 2007 से 2012 तक बीजेपी और फिर 2012 से 2017 तक कांग्रेस राज्य की सत्ता पर काबिज रही। अब 2017 में एक बार फिर बीजेपी राज्य में सरकार बनाने जा रही है।
4- कांग्रेस की टॉप लीडरशिप का हिमाचल में दिलचस्पी न लेना
कांग्रेस की टॉप लीडरशिप ने इस बार हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली। राहुल गांधी समेत बड़े नेताओं ने गुजरात पर ज्यादा फोकस किया और हिमाचल को उसके हाल पर छोड़ दिया। यदि राहुल समेत कांग्रेस की टॉप लीडरशिप हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ज्यादा दिलचस्पी लेती तो कांग्रेस को इतनी बड़ी हार नहीं झेलनी पड़ती।
5- केंद्र सरकार की योजनाएं
केंद्र सरकार की योजनाओं ने भी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में हवा बनाई। प्रधानमंत्री उज्जवला योजना को हिमाचल प्रदेश में हाल ही में लॉन्च किया गया था और इससे निश्चित तौर पर बीजेपी को कुछ न कुछ फायदा जरूर पहुंचा। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों को मुफ्त में LPG कनेक्शन दिया गया। इसके अलावा नरेंद्र मोदी प्रदेश की जनता में यह विश्वास जगाने में कामयाब रहे कि यदि हिमाचल में बीजेपी की सरकार बनती है तो प्रदेश को विकास की एक नई डगर पर ले जाया जाएगा।