आर.आर.एस की नज़र अब पूर्वोत्तर, दक्षिण भारत पर, हिंदुओ में एका के लिए नयी योजना
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अब उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत की तरफ रुख़ करने की योजना बनाई। योजना के तहत विदेशी भाषा के बजाय क्षेत्रीय भाषाओं को ज्यादा अहमियत दी जाएगी।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने अब उत्तर पूर्व और दक्षिण भारत की तरफ रुख़ करने की योजना बनाई। योजना के तहत विदेशी भाषा के बजाय क्षेत्रीय भाषाओं को ज्यादा अहमियत दी जाएगी।
नागपुर में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक में इन योजनाओं पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया। रविवार को खत्म हुई बैठक में संघ के 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी इन तीन दिनों में नागपुर में ही रहे।
संघ अगले तीन साल में 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान भूमि' की योजना पर चलेगा। संघ का टारगेट इस नए प्लान के जरिए जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म कर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों को एकजुट करने का है। संघ की उन लोगों को भी फिर से हिंदू धर्म में लाने की योजना है, जिन्होंने कोई और धर्म स्वीकार कर लिया है।
बैठक में संघ ने जाति से जुड़े उस सर्वे का जायजा लिया, जिसे संगठन ने हाल में एक दर्जन से भी ज्यादा राज्यों में करवाया था। कार्यकर्ताओं को जाति के आधार पर भेदभाव और इससे निपटने के तरीकों पर प्रेजेंटेशन देने को कहा गया। माना जा रहा है कि सरसंघचालक मोहन भागवत की इस कार्यक्रम में काफी दिलचस्पी है। स्वयंसेवकों को आने वाले महीनों में 'जनजागरण' कमिटी बनाकर सभी राज्यों में इस अभियान को तेज करने को कहा गया।
सभा में बिहार, पश्चिम बंगाल में कुछ महीने बाद होने वाले चुनाव और दूसरे राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियों पर चर्चा हुई। सूत्रों के अनुसार बीजेपी में खाली पड़े महासचिव के पदों और कैबिनेट में फेरबदल पर भी चर्चा हुई।
आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा, ‘संघ का फोकस अगले तीन सालों में समावेश और समीक्षा पर रहेगा। हम सिर्फ 54 हजार गांवों तक पहुंचे हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में हमने 10 हजार नए केंद्र शुरू किए हैं। यह दिखाता है कि लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है।’
सभा ने एक और प्रस्ताव किया जिसमें कहा गया कि प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा या फिर राज्य भाषा में दी जानी चाहिए। "एक विदेशी भाषा सीखने के लिए एक व्यक्ति अपने परिवेश, परंपराओं, संस्कृति और जीवन के मूल्यों से दूर चला जाता है"। संघ का लक्ष्य साउथ इंडिया और में शाखाओं की संख्या बढ़ाने का है। दक्षिण की शाखाओं के लिए नए प्रमुखों को शनिवार को नामित किया गया।
शिक्षा, राजनीति, संस्कति और सामाजिक क्षेत्रो में सक्रिए 25 ग्रुप्स ने शनिवार और रविवार को अपने रिपोर्ट कार्ड पेश किए। आरएसएस नेता जे नंदकुमार ने कहा कि संघ के शैक्षिक संस्थानों ने पिछले तीन सालों में शानदार प्रगति की है। उन्होंने कहा कि ‘योजना विस्तार की है। हर जिले और जितने हो सके उतने घरों तक पहुंचने की योजना है।’ वरिष्ठ संघ नेता यह महसूस करते हैं कि हिंदुओं को एक करने के पिछले सारे प्रयास सफल नहीं हो सके क्योंकि उनके अपने बीच ही मतभेद हैं।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक में महौल उत्साहजनक था। पिछले कुछ महीनों में ही शाखाओं और सेवकों की संख्या में करीब 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।