नई दिल्ली: गुजरात में वो पटेल समुदाय जो व्यापारी वर्ग का चेहरा हो, उद्योग धंधों जिसके हों, जिनकी बड़ी-बड़ी खेतीबाड़ी हो, दुनिया की दो तिहाई डायमंड इंडस्ट्री पर जिनका कब्जा हो, यहां तक की गुजरात विधानसभा में जिसके 50 फीसद से ज्यादा विधायक हों, और ख़ुद गुजरात की मुख्यमंत्री पटेल हो तो फिर उन्हें आरक्षण की क्या वाक़ई ज़रूरत है?
हम आपको बताते हैं कि क्या है पटेल समुदाय की गुजरात में पृष्ठभूमि, क्या हैं उनकी मांगें।
गुजरात की कुल आबादी 6 करोड़ 27 लाख है जिसमें पटेल समुदाय की तादाद 20 प्रतिशत है। अमरीका में पटेल उपनाम सबसे प्रचलित 500 टाइटिल या अंतिम नामों की सूची में 174वें स्थान पर है। वहीं भारत में गुजरात के अधिकांश शहरों में प्रमुख बिल्डर्स, दिग्गज हीरा व्यवसायी, कारोबारी और राजनेता सभी पटेल समुदाय से हैं।
पटेल समुदाय आरक्षण और ओबीसी दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर अब तक 70 रैलियां कर चुका है।
दरअसल ये वो लोग हैं, जिन्होंने नकदी फसलों से पैसा कमाया और उसे लघु, मझोले उद्योगों में डाला, लेकिन मोदी के शासनकाल में केवल बड़े उद्योगों की ओर ध्यान दिया और ये सभी छोटे उद्योग बंद होते चले गए।
लेकिन गुजरात में तकरीबन 60 हजार उद्योग बंद हो गए और उसका इंपेक्ट पटेल समुदाय पर ज्यादा हुआ। इसी तरह साउथ गुजरात में डायमंड इंडस्ट्री का डिक्लाइन हुआ और उसका भी प्रभाव इन पर हुआ, लिहाजा यही वजह है कि ये लोग आरक्षण मांग रहे हैं। फिर भी उनकी यह आरक्षण की मांग जायज नहीं है क्योंकि राजनीतिक रूप से भी पटेल काफी वर्चस्वशाली है।
गुजरात में ज्यादातर पटेल शिक्षित सक्षम और समृद्ध हैं उन्हें आरक्षण की जरूरत ही नहीं है। यही नहीं गुजरात में करीब 40 विधायक पटेल समुदाय से ही हैं और स्वयं मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल इसी समुदाय से आती हैं। गुजरात में कुछ जातियां इतनी ग़रीब हैं कि उनके पास आन्दोलन करने के लिए पैसे नहीं हैं और उनकी आवाज़ सुनने वाला भी कोई नहीं है।
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