गोपाल कृष्ण गांधी का आरोप, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमले'
विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी ने आज आरोप लगाया कि अभिव्यक्ति, विचार और आस्था की स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमले किए जा रहे हैं और लोगों की जहनियत में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का एक नया विभाजन बोया जा रहा है। उन्होंन
नई दिल्ली: विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी ने आज आरोप लगाया कि अभिव्यक्ति, विचार और आस्था की स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमले किए जा रहे हैं और लोगों की जहनियत में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का एक नया विभाजन बोया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सांप्रदायिकता के गोलों को उनके रास्ते में ही रोकने की जरूरत है।
अपने चुनाव के प्रसंग की व्याख्या करते हुए गांधी ने जनता को लिखे पत्र में कहा कि हालांकि विभाजन अब अतीत की बात है, तब भी हमारे मानस में मनोवैज्ञानिक अलगाव का एक नया विभाजन बोया जा रहा है और हमें सांप्रदायिकता के गोलों को जरूर रोकना चाहिए।
एनडीए उम्मीदवार वैंकेया नायडु के साथ उप राष्ट्रपति की भूमिका पर चर्चा की मांग करने के कई दिन बाद यह पत्र आम लोगों के लिए लिखा गया है। अपने पत्र में उन्होंने कहा आस्था, विचार और अभिव्यक्ति की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष हमले किए जा रहे हैं और लोक मुद्दों के लिए काम कर रहे संस्थान अपने ऊपर जहां वह असहमत होना चाहते हैं वहां पालन करने, जहां बोलने की इच्छा रखते हैं वहां चुप रहने का स्प्ष्ट दबाव महसूस करते हैं।
गांधी ने यह भी कहा जब परस्पर निष्ठा की बात आती है, असहिष्णुता और कट्टरता अब तक के सबसे ऊंचे स्तर तक बढ़ गयी है। उन्होंने पत्र में कहा कि अब से छह महीने बाद गांधी जी की हत्या और विभाजन के जख्म के 70 साल पूरे हो जाएंगे। यह कि विभाजन अब एक तथ्य है, 1946-47 के दंगे एक पुरानी बात है। और अब भी हमारे मानस में एक नए किस्म का विभाजन बोया जा रहा है, एक मनोवैज्ञानिक विभाजन।
उन्होंने कहा जैसा कि स्वर्गीय दर्शनशास्त्री रामचंद्र गांधी ने कहा, महात्मा को प्रार्थना के लिए जाने से नफरत की तीन गोलियों ने नहीं रोका था। बल्कि, उन्होंने दिल में भरी प्रार्थना से उन तीन गोलियों को उनके रास्ते में ही रोक दिया था। हमें सांप्रदायिकता के प्रक्षेप्यों को रास्ते में ही रोक देना चाहिए। महात्मा गांधी के पोते ने कहा कि स्वतंत्रता, न्याय, बराबरी के जो विचार स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्यों और मूल्यों से निर्मित हुए हैं वह आजाद भारत के 70वें साल में एक अप्रतिरोध्य अत्यावश्यकता बन गए हैं। वह चुनौती का सामना कर रहे हैं।
निर्वाचन आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के आयोजन के लिए अभिवादन करते हुए उन्होंने कहा हमें खुद से पूछना होगा स्वतंत्र विकल्पों के विस्तृत परिदृश्य में, हम कितने स्वतंत्र हैं क्या हम अपनी तरह की जिंदगी, हमारे विचारों और अभिव्यक्ति के तरीके चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि क्या कोई स्वतंत्र है और विशाल उद्योगों को बता पाने में सक्षम है कि हमारी नदियों, हवाओं को दूषित न करें और हमारे पर्यावरण में जहरीला कचरा न डालें।