नई दिल्ली: पूर्व केंद्रीय मंत्री और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेताओं में गिने जानेवाले अजित सिंह का आज गुरुग्राम के अस्पताल में निधन हो गया। वे कोरोना से संक्रमित थे। अजित सिंह को राजनीति विरासत में मिली थी। पिता चौधरी चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री रह चुके थे। पिता के बीमार पड़ने के बाद अजित सिंह राजनीति में आए और कई बार केंद्र में मंत्री भी रहे। वे पेशे से कंप्यूटर साइंटिस्ट भी रहे। उन्होंने आईबीएम में भी काम कि था।
अजित सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को मेरठ में हुआ था। अजीत सिंह की दिलचस्पी विज्ञान विषय में थी। उन्होंने IIT खड़गपुर से B.Tech (कंप्यूटर साइंस) और M.S. प्रौद्योगिकी संस्थान इलिनोइस से किया। वह पेशे से एक कंप्यूटर साइंटिस्ट थे । 1960 के दशक में आईबीएम के साथ काम करने वाले पहले भारतीयों में से एक थे।
अजित सिंह पहली बार 1986 में अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बीमार होने के बाद राज्यसभा के लिए चुने गए थे। 1989 उन्होंने अपनी पार्टी का जनता दल विलय कर लिया और वीपी के नेतृ्त्व वाली जनता दल के महासचिव बने। उस चुनाव के दौरान अजित सिंह ने काफी मेहनत की और जनता दल को उत्तर प्रदेश से मिली सफलता में अजित सिंह का बड़ा योगदान था। 1989 में बागपत से लोकसभा उन्होंने चुनाव जीता। वह दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक वीपी सिंह के मंत्रिमंडल में उद्योग मंत्री रहे। 1991 के आम चुनाव में उन्होंने फिर से लोकसभा का चुनाव जीता। उन्होंने पी वी नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में खाद्य मंत्री के रूप में भी काम किया।
अजित सिंह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते लेकिन उन्होंने पार्टी और लोक सभा से इस्तीफा दे दिया। फिर उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल की स्थापना की और 1997 के उपचुनाव में फिर से चुने गए। वे 1998 का चुनाव हार गए और 1999, 2004 और 2009 में फिर से चुने गए।2001 से 2003 तक, वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री रहे। 2011 में यूपीए में शामिल होने के बाद अजित सिंह दिसंबर 2011 से मई 2014 तक नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के संजीव बाल्यान से हार गए। इसके बाद से अजित सिंह को सियासी तौर पर कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई थी। हाल में किसान आंदोलन के दौरान उन्होने राकेश टिकैत का समर्थन किया था।
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