नई दिल्ली: उद्धव ठाकरे की ताजपोशी आज है लेकिन मुख्यमंत्री का ताज उनके लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। वो भी तब जब गठबंधन की सरकार है और गठबंधन भी ऐसी जो उद्धव की हिंदुत्ववादी शैली के उलट है। सीएम की कुर्सी पर बैठकर जहां उद्धव ठाकरे के लिए 5 साल तक सरकार चलाना चुनौती है वहीं शिवसेना की शैली के मुताबिक काम करना भी एक बड़ा चैलेंज होगा। उद्धव की अगुवाई में चलनेवाली तीकड़ी सरकार का कॉमन मिनिमन प्रोग्राम भी तय है। बावजूद इसके उद्धव सरकार की चुनौतियां कम नहीं हैं।
महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे आज शपथ लेंगे लेकिन ये ताजपोशी किसी कांटे के ताज से कम नहीं है। ये उद्धव भी जानते हैं और उन्हें समर्थन दे रही एनसीपी-कांग्रेस भी। यही वजह है कि सरकार बनाने का दावा पेश करने से पहले शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच कई दिनों तक और कई दौर की बैठकें हुई। इतना ही नहीं एकजुटता दिखाने के लिए तीनों दलों के विधायकों ने तीनों दलों के नेताओं के नाम पर सौंगध भी खाई।
ये सौगंध बताती है कि कहीं ना कहीं आपस में विरोधाभास है, वरना कसम खाने की जरूरत क्या थी और फिर इस बात की क्या गारंटी है कि कसमे-वादे टूटेंगे नहीं। उद्धव ठाकरे के पास जो सबसे बड़ी चुनौती है वो है सहयोगी कांग्रेस और एनसीपी के साथ सामंजस्य बनाकर चलना। शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की अपनी-अपनी विचाराधारा और एजेंडे हैं। तीनों विचारधारा और संस्कृति के मामले में एकदूसरे से भिन्न हैं।
शिवसेना को भी इस बात का इल्म है, लिहाजा पोस्टर के जरिए पुरानी दोस्ती याद दिलाई जा रही है। मुंबई में शिवसेना भवन के बाहर पोस्टर लगाए गए हैं जिसमें बाल ठाकरे और इंदिरा गांधी एक साथ हैं। दोनों एक दूसरे का स्वागत करते दिख रहे हैं। इस पोस्टर के जरिए शिवसेना ये संदेश देने की कोशिश में है कि कांग्रेस से उसका रिश्ता पहले भी ठीक रहा है। बता दें कि इमरजेंसी के दौरान शिवसेना ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया था।
शिवसेना शुरू से ही कट्टर हिंदुत्व की छवि वाली रही है, ऐसे में कांग्रेस के साथ कई ऐसे मुद्दे हैं जिस पर उसका मतभेद रहा है। ऐसे में उनके सामने कट्टर हिंदुत्व की छवी बरकरार रखना बड़ा चैलेंज है। बीजेपी भी ये जानती है लिहाजा सरकार बनने से पहले ही वो शिवसेना पर निशाना साधा रही है। बीजेपी का आरोप है कि सत्ता के लिए शिवसेना ने हिंदुत्व की राजनीति से समझौता कर लिया है।
ये तय है कि जिस दौर से महाराष्ट्र की राजनीति गुजर रही है उसमें उद्धव के सामने चुनौतियों की भरमार है। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के विधायकों के बीच अभी भी टूट-फूट का डर बरकरार है। कर्नाटक का उदाहरण सबके सामने है। उद्धव के पास इस बात की भी चुनौती होगी कि ऑपरेशन लोटस का मुकाबला वो कैसे करेंगे।
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