BLOG: ''डाल-डाल, पात-पात के बीच सर्वसम्मति की बात''
बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच राष्ट्रपति चुनाव के और दिलचस्प होने की उम्मीद है...एनडीए और विपक्षी दल भले ही सर्वसम्मति से उम्मीदवार का राग अलाप रहे हैं...लेकिन दोनों पक्षों की कवायद से यह साफ है कि देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवारियां तय होने तक
बदलते सियासी घटनाक्रम के बीच राष्ट्रपति चुनाव के और दिलचस्प होने की उम्मीद है...एनडीए और विपक्षी दल भले ही सर्वसम्मति से उम्मीदवार का राग अलाप रहे हैं...लेकिन दोनों पक्षों की कवायद से यह साफ है कि देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवारियां तय होने तक 'तू डाल-डाल तो मैं पात-पात' का खेल चलता रहेगा...
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का दावा है कि उसने जीत के लिए जरूरी आंकड़े जुटा लिए हैं...बावजूद विपक्ष किसी भी स्थिति में हथियार डालने के मूड में नहीं हैं। यह मुमकिन नहीं लगता है कि किसी भी तरफ से पेश किसी नाम पर आम सहमति बन जाएगी। इतिहास भी बताता है कि इस तरह की परिस्थितियां कई बार आई लेकिन 13 राष्ट्रपति चुनावों में केवल 1977 में नीलम संजीव रेड्डी के दौरान ही आम सहमति बन पायी...
आम सहमति नहीं बनने के पीछे कई कारण हैं...दरअसल एनडीए की स्पष्ट बढ़त के बावजूद विपक्षी दलों को लगता है कि अगर बीजेपी को आम सहमति के लिए मजबूर कर सके अथवा व्यापक गठबंधन करके साझा प्रत्याशी उतारे और उसके प्रत्याशी को कड़ी चुनौती पेश कर सकें तो उसका संदेश दूर तक जाएगा।
सोनिया गांधी ने इसके लिए कई दौर की बैठकें और डिनर पार्टी भी रखीं...पर आपसी टकराहट की वजह से उसकी शुरुआत भी प्रथमग्रासे मक्षिकापात: जैसी ही रही...सोनिया की डिनर पार्टी में आम आदमी पार्टी को न्यौता नहीं दिया गया तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने व्यक्तिगत व्यस्तता का हवाला देकर शामिल होने से मना कर दिया। नीतीश ने बतौर प्रतिनिधि शरद यादव को पार्टी में भेजा तो जरूर लेकिन वह इन चर्चाओं को विराम नहीं लगा पाए कि डिनर पार्टी में लालू यादव की मौजूदगी की वजह से उन्होंने अनुपस्थित रहने का रास्ता चुना।
ममता बनर्जी समेत कुछ नेताओं ने केजरीवाल को साथ लेने की बात उठाई...यह भी कहा गया कि आम आदमी पार्टी बिना शर्त विपक्षी राष्ट्रपति उम्मीदवार को समर्थन दे सकती है लेकिन कांग्रेस नेताओं ने इसे खारिज कर दिया। उनका मानना है कि 'आप' के चार में से तीन सांसद पहले ही केजरीवाल के खिलाफ हैं ऐसे में पार्टी के विपक्षी खेमे में शामिल होने के बाद भी राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादा लाभ होने की संभावना कम ही नजर आ रही है।
दूसरी तरफ बीजेपी के भीतर भी अपनी शर्त पर आम सहमति की बात उठ रही है। बीजेपी के पास पहली बार संख्याबल के लिहाज से अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने का मौका मिला है। इसी को देखते हुए खुद बीजेपी के भीतर यह आवाज भी उठ रही है कि इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए पार्टी या पार्टी विचारधारा से जुड़े किसी शख्स को ही उम्मीदवार बनाया जाना चाहिए। इसी बात को लेकर सवाल खड़ा होता है कि क्या ऐसे किसी उम्मीदवार के नाम पर विपक्ष अपनी सहमति जताएगा?
कुछ जानकारों का तो कहना है कि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी दूसरे चुनावों की तरह इस चुनाव में भी कुछ अप्रत्याशित नाम सामने ला सकती है। राष्ट्रपति चुनाव में भी हैरान और चकित करने से कम पर रुकने वाले नहीं हैं। फिलहाल आम सहमति के हो-हल्ला के बीच सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों ही 'वेट एंड वॉच' के फंडे पर हैं।
(इस ब्लॉग के लेखक शिवाजी राय पत्रकार हैं और देश के नंबर वन हिंदी न्यूज चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं)