BLOG: मायावती तब ग़लत थीं या अब सही हैं?
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद जिसकी सबसे ज़्यादा चर्चा हुई ,वो हैं बसपा अध्यक्ष बहन मायावती। मायावती की चर्चा उनके दोहरे रवैये की वजह से हुई।
लगातार हो रहे दलित एक्ट के दुरूपयोग पर इसी साल मार्च महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलित एक्ट में संशोधन पर अब साफ़ हो गया है कि भारत में जातिवाद की ही राजनीति होगी। 21वीं सदी की भारतीय राजनीति भी जातिवाद पर आधारित होगी। क्योंकि युवा नेताओं ने भी विरासत में मिली जातिवादी राजनीति को आगे बढ़ाने का प्रण ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर जातिवादी राजनीति को ज़्यादातर राजनीतिक दलों ने बोलकर समर्थन किया। और जिन लोगों ने अबतक अपना रूख़ साफ़ नहीं किया है वो शायद इस इन्तज़ार में होंगे कि 2019 लोकसभा चुनाव तक, ग़लत पर हो रहे सवर्ण बनाम दलित का अंतिम नतीज़ा क्या निकलेगा।
2 अप्रैल को दलितों का भारत बन्द दलित आन्दोलन के इतिहास का हिंसक आन्दोलन था। इस आन्दोलन में देशभर से क़रीब 11 लोगों की जान गई थी। सरकारी और ग़ैर-सरकारी सम्पत्तियों को ज़बरदस्त नुक़सान पहुंचाया गया था। जगह-जगह से भीषण आगजनी की भी ख़बरें आई थी। दलितों के भारत बन्द के जवाब में 6 सितम्बर को सवर्णों का भारत बन्द क़रीब-क़रीब शान्तिपूर्ण रहा था। लेकिन देशभर के सवर्णों में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त नाराज़गी है। क्योंकि मोदी सरकार ने एक सरकार के तौर अपने संवैधानिक कर्तव्य को भुलते हुए, सवर्णों के संवैधानिक अधिकार का भी हनन किया है। आशंका जताई जा रही है कि सवर्णों की जायज़ नाराज़गी की कीमत आगामी चुनावों में भाजपा को चुकानी पड़ेगी।
ख़ैर, दलित एक्ट में आगे क्या होगा, वक़्त बतायेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद जिसकी सबसे ज़्यादा चर्चा हुई ,वो हैं बसपा अध्यक्ष बहन मायावती। मायावती की चर्चा उनके दोहरे रवैये की वजह से हुई। साल 2007 में जब मायावती तीसरी बार मुख्यमंत्री बनी थीं, तो उनके कार्यकाल में तब के चीफ़ सेक्रेटरी शम्भु नाथ ने 20 मई 2007 को एक चिट्ठी जारी कर कहा था कि दलित एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति की गिरफ़्तारी तब ही हो, जब वो प्राथमिक जांच में दोषी पाया जाए। सिर्फ़ शिकायत करने पर किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा।
पहली चिट्ठी के 6 महीने बाद 20 अक्टूबर 2007 को तब के चीफ़ सेक्रेटरी प्रशान्त कुमार ने डीजीपी समेत फ़ील्ड में तैनात सभी वरिष्ठ अधिकारियों को दलित एक्ट का दुरूपयोग करने वालों के ख़िलाफ़ धारा 182 के तहत केस दर्ज करने का निर्देश दिया था। लेकिन सत्ताहीन हो चुकी मायावती अब सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का विरोध कर रही हैं। क्या इसके पीछे मायावती के दलित राजनीति का अनुभव है? क्योंकि मायावती को दलित राजनीति की वजह से ही सत्ता का सुख प्राप्त हो चुका है। ऐसे में मायावती सवालों के घेरे में है। 7 सितम्बर को मायावती ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सवर्णों के भारत बन्द को बीजेपी और आरएसएस की साज़िश बताया। तो क्यों ना 2 अप्रैल को दलितों के भारत बन्द को बसपा समेत दलितों की राजनीति करने वाली तमाम पार्टियों की साज़िश मानी जाए? जहां तक मुझे याद आ रही है दलितों के भारत बन्द को मायावती ने दलितों का गुस्सा करार दिया था। और दलितों के भारत बन्द का समर्थन किया था।
पीसी में मायावती ने ये भी कहा कि मेरी पार्टी दलित एक्ट के दुरूपयोग वाली बात से सहमत नहीं है। जबकि राज्यसभा में गृह मंत्रालय द्वारा बताये आंकड़े से पता चलता है कि 2014-2016 के बीच 20708 झूठे मुक़दमे में लोगों को फंसाया गया था। बीते बुधवार को ही ग्वालियर, मध्य प्रदेश के धौलपुर के कुशवाहा से ख़बर आई कि सड़क पर बड़े-बड़े गढ्ढे होने की वजह से एक बच्ची बाइक से गिर गई, जिसके बाद गुस्साये स्थानीय लोगों ने वहां के पार्षद के घर ख़राब सड़क और खुले सीवरों की शिकायत की। जिसके बाद पार्षद चतुर्भुज धनौनिया ने 100 लोगों पर एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कर दिया है। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं। मायावती ने आगे कहा कि बीजेपी ने दलितों के साथ खिलवाड़ किया है। दरअसल आरएसएस की मानसिकता जातिवादी और बीजेपी की नीतियां एससी/एसटी विरोधी है। मायावती को ये समझना पड़ेगा कि बीजेपी ने दलित नहीं बल्कि सवर्णों के साथ खिलवाड़ किया है। आरएसएस की मानसिकता को जातिवादी बताने से, क्या बसपा की मानसिकता छिप जाएगी? मायावती ने कहा कि जो लोग एससी/एसटी एक्ट के ख़िलाफ़ विरोध कर रहे हैं वह बिल्कुल ग़लत है। उन लोगों ने अपने दिमाग़ में ग़लतफ़हमी पाल रखी है। दुर्भाग्य कि बात है कि शायद अबतक मायावती समझ नहीं पाईं है कि विरोध किस बात का हो रहा है। विरोध दलित एक्ट का नहीं, बल्कि दलित एक्ट में बिना जांच के गिरफ़्तारी के प्रावधान का हो रहा है।
(ब्लॉग लेखक आदित्य शुभम इंडिया टीवी में कार्यरत हैं और इस ब्लॉग में व्यक्त विचार उनके अपने हैं।)