बिहार चुनाव: किसका कद बढ़ा, किसको लगा करारा झटका...
नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नीतीश,लालू और राहुल की आपसी एकता रंग लाई है,और चुनाव में महागठबंधन को शानदार सफलता इस बात का सबूत है। डीएनए विवाद,आरक्षण कार्ड और जाति का गणित भाजपा
अमित शाह: दिल्ली के बाद बिहार में टूटी उम्मीद
भाजपा बिहार चुनाव में छोटे दलों के साथ बिहार फतह करना चाहती थी। चुनावी प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी अमित शाह का मुकाबला इस बार नीतीश कुमार और लालू प्रसाद से था लेकिन इस बार वे यहां लोकसभा चुनाव की सफलता दोहरा नहीं पाएं। भाजपा यहां जीत के साथ बंगाल और पंजाब के साथ ही 2017 में होने वाले यूपी के चुनाव के लिए अपना दावा मजबूत करना चाहती थी लेकिन यहां चुनावी प्रबंधन में अमित शाह चूक गए। दिल्ली के बाद बिहार चुनाव में हार के बाद अमित शाह के चुनावी प्रबंधन पर लोग सवाल उठा सकते हैं लेकिन यूपी और बंगाल में शाह को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। 2016 में भाजपा अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल भी खत्म हो रहा है ऐसे में आने वाला समय अमित शाह के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
सपा और औवेसी को लगा झटका
बिहार विधानसभा चुनाव 2014 में एक समय महागठबंधन की अगुवा पार्टी रही सपा ने ऐन वक्त पर अपना नाता तोड़ लिया,लालू और शरद के मनाने के बावजूद मुलायम यह कहकर महागठबंधन से अलग हो गए कि यह पार्टी का फैसला है और इसे वह बदल नहीं सकते। गौरतलब है कि सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा था कि महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने का मतलब होगा राजनीतिक रूप से डेथ वारंट पर हस्ताक्षर करना। लेकिन महागठबंधन की जीत के बाद सपा नेता का दाव उल्टा पड़ गया है और मोदी और भाजपा विरोधी बड़े नेताओं में अब नीतीश और लालू प्रसाद की जोड़ी का ग्राफ केंद्र की राजनीति में बढ़ गया है। इस जोड़ी को ममता,केजरीवाल और कांग्रेस का समर्थन भी प्राप्त है। देखा जाए तो सपा प्रमुख चुनावी आकलन करने में मात खा गए,कभी वह महागठबंधन के सबसे बड़े नेता के रूप में प्रमुख चुने गए थे। औवेसी ने भी बड़े जोर शोर से सीमांचल में चुनाव लड़ा था लेकिन उसे भी वहां कुछ विशेष सफलता नहीं मिली है।