नई दिल्ली: वित्तमंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को कहा कि गुप्त रूप से शामिल किए संविधान के अनुच्छेद 35 ए से जम्मू-कश्मीर सरकार को न सिर्फ प्रदेश के निवासियों और भारत के अन्य नागरिकों के बीच भेदभाव करने का अधिकार मिलता है बल्कि प्रदेश के दो नागरिकों के बीच भी स्थायी निवासी व अन्य के आधार पर भेदभाव होता है।
जेटली ने इसे संवैधानिक रूप से दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि इसे गुप्त रूप से राष्ट्रपति की अधिसूचना द्वारा शामिल किया और यह न तो संविधान सभा द्वारा निर्मित मूल संवधिान का हिस्सा है और न ही यह संविधान संशोधन के रूप में आया है। उन्होंने कहा कि संविधान संशोधन की मंजूरी के लिए संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है।
एक फेसबुक पोस्ट में जेटली ने सवाल किया कि प्रदेश में वह कानून क्यों नहीं लागू होता है जो देश के बाकी हिस्से में लागू होता है।
उन्होंने सवाल करते हुए लिखा, "क्या हिंसा, अलगाववाद, समूह द्वारा पत्थरबाजी, विद्वेषपूर्ण वैचारिक भावना भरने की इजाजत इस दलील पर दी जानी चाहिए कि अगर हम इस पर अंकुश लगाएंगे तो इसका नकारात्मक प्रभाव होगा। यह गलत धारणा की नीति है जो अनुत्पादक साबित हो चुकी है।" उन्होंने आगे लिखा कि मौजूदा सरकार ने फैसला लिया है कि प्रदेश में एक समान कानून लागू होना चाहिए।
अनुच्छेद 35 ए को विभाजनकारी बताते हुए उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर में लाखों नागरिक मतदान करते हैं, लेकिन विधानसभा, नगरनिगम या पंचायत चुनावों में नहीं करते हैं। उनके बच्चों को सरकारी नौकरियां नहीं मिल सकती हैं। वे संपत्ति के स्वामी नहीं बन सकते हैं और उनके बच्चों का दाखिला सरकारी संस्थानों में नहीं हो सकता है। यह उन पर भी लागू होता है जो देश में अन्यत्र निवास करते हैं। प्रदेश से बाहर शादी करने वाली महिलाओं को पैतृक संपत्ति से वंचित होना पड़ता है।"
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