जन्मदिन विशेष: एपीजे अब्दुल कलाम नहीं कर पाए अपना एक सपना पूरा, जानिये क्या था वो
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन में बहुत सारे उल्लेखनीय कार्य किये और ख्याति प्राप्त की लेकिन वो अपना एक सपना पूरा नहीं कर पाये। आप जानते हैं उनका वो सपना क्या था?
नई दिल्ली: 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में लोकप्रिय हुए और 'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म दिवस 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारे उल्लेखनीय कार्य किये और ख्याति प्राप्त की लेकिन वो अपना एक सपना पूरा नहीं कर पाये। आप जानते हैं उनका वो सपना क्या था?
उनका 'सबसे प्रिय सपना' पायलट बनने का था। अपने इस सपने को वे पूरा नहीं कर सके। कलाम ने अपनी पुस्तक 'माई जर्नी: ट्रांसफॉर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शंस' में इसपर प्रकाश डाला है। वह अपने सपने के बहुत करीब पहुंचकर चूक गए थे। भारतीय वायुसेना में तब केवल आठ जगहें खाली थीं और कलाम को चयन में नौंवा स्थान मिला था।
अपनी किताब में कलाम ने लिखा है कि वह पायलट बनने के लिए बहुत बेताब थे। कलाम ने मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। कलाम ने इस किताब में लिखा था, "मैं हवा में ऊंची से ऊंची उड़ान के दौरान मशीन को नियंत्रित करना चाहता था, यही मेरा सबसे प्रिय सपना था।" कलाम को दो साक्षात्कारों के लिए बुलाया गया था। इनमें से एक साक्षात्कार देहरादून में भारतीय वायुसेना का और दूसरा दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) का था।
कलाम ने लिखा कि डीटीडीपी का साक्षात्कार 'आसान' था, लेकिन वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि योग्यताओं और इंजीनियरिंग के ज्ञान के अलावा बोर्ड, उम्मीदवारों में खास तरह की 'होशियारी' देखना चाहता था। वहां आए 25 उम्मीदवारों में कलाम को नौंवा स्थान मिला, लेकिन केवल आठ जगहें खाली होने की वजह से उनका चयन नहीं हुआ।
कलाम ने कहा था, मैं वायुसेना का पायलट बनने का अपना सपना पूरा करने में असफल रहा। उन्होंने लिखा है, मैं तब कुछ दूर तक चलता रहा और तब तक चलता रहा जब तक कि एक टीले के किनारे नहीं पहुंच गया। इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश जाने और एक नई राह तलाशने का फैसला किया।
डीटीडीपी में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक की अपनी नौकरी में अपना 'दिल और जान डालने वाले' कलाम ने लिखा, जब हम असफल होते हैं, तभी हमें पता चलता है कि यह संसाधन हमारे अंदर हमेशा से ही थे। हमें उनकी तलाश करनी होती है और जीवन में आगे बढ़ना होता है।
इस किताब में वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर उनके कार्यकाल, सेवानिवृत्ति के बाद का समय और इसके बाद शिक्षण के प्रति उनका समर्पण एवं राष्ट्रपति के तौर पर उनके कार्यकाल से जुड़ी 'असंख्य चुनौतियां और सीखों' की कहानियां हैं। कलाम के वैज्ञानिक सलाहकार रहते हुए ही भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था। कलाम ने इस किताब में अपने जीवन की सीखें, किस्से, महत्वपूर्ण क्षण और खुद को प्रेरित करने वाले लोगों का वर्णन किया है।