मप्र हार के बाद अब कांग्रेस की नजर राजस्थान-गुजरात के राज्यसभा चुनाव पर
मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के अल्पमत में आने और सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी अपने लोगों को एक साथ रखने में जुटी हुई है।
नई दिल्ली: मध्यप्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के अल्पमत में आने और सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी अपने लोगों को एक साथ रखने में जुटी हुई है। कांग्रेस अब गुजरात और राजस्थान में दो-दो राज्यसभा सीटें जीतने पर पूरा ध्यान लगा रही है। इन दोनों जगह भारतीय जनता पार्टी ने अपने अतिरिक्त उम्मीदवार उतारे हैं।
गुजरात में कांग्रेस के पर्यवेक्षक बी.के.हरि प्रसाद ने कहा, "हमने अपनी संख्या के अनुसार वोटों की गिनती कर ली है और हम दोनों राज्यों में अपनी जीत को लेकर निश्चिंत हैं।" पार्टी ने राज्य में भाजपा द्वारा पूर्व कांग्रेस सदस्य नरहरि अमीन को उतारने के बाद अपने पांच विधायकों के पलायन को देखा है। अब कांग्रेस के लिए दूसरी सीट भी मुश्किल में लगती है।
पार्टी ने भरतसिंह सोलंकी और शक्तिसिंह गोहिल को मैदान में उतारा है। पहली सीट गोहिल को दी गई है और दूसरी सीट सोलंकी को। अब इन्हें अन्य विधायकों के वोटों का प्रबंधन करना है। पार्टी को दो निर्दलीय विधायकों जिग्नेश मेवानी और छोटू वसावा, इसके अलावा एक राकांपा के विधायक का वोट मिलने का भरोसा है।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है, "पूर्व मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी के बेटे को उनकी साख के कारण वोट मिलेंगे जो संप्रग शासन के दौरान केंद्रीय मंत्री थे।"
राजस्थान में कांग्रेस के पास एक और मुश्किल है, जहां भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में एक और उम्मीदवार ओंकार सिंह लखावत को चुनाव में उतारा है। कांग्रेस ने संगठन महासचिव के.सी.वेणुगोपाल और नीरज डांगी को उतारा है। फिर भी भाजपा जीत के लिए आशान्वित है।
राजस्थान में सब ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच संबंध अच्छे नहीं हैं, लेकिन कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र ने कहा है कि राज्य में सीटों में खासा अंतर है, इसलिए यहां मप्र जैसे तख्तापलट की संभावना कम है।
सचिन पायलट ने पहले ही अशोक गहलोत द्वारा ऊपरी सदन के चुनाव के लिए एक हीरा व्यापारी राजीव अरोड़ा को मैदान में उतारने के प्रयासों को विफल कर दिया है।