World Environment Day: दुनिया बचाने का आखिरी मौका! 2030 तक 45% कम करना होगा कार्बन उत्सर्जन
World Environment Day: इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट बताती है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अब शायद बस एक आखिरी मौका ही बचा है और इस मौके का फायदा अगले आठ सालों में ही उठाया जा सकता है।
Highlights
- भारत-पाकिस्तान में खतरनाक हीटवेव का खतरा 30 फीसदी बढ़ा
- वर्ष 2021-22 रहे पिछले 2 हजार साल में सबसे ज्यादा गर्म
- वैश्विक औसत तापमान 1.5 डिग्री जरूरी, हम 2.7 डिग्री वृद्धि की ओर बढ़ रहे
World Environment Day: ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया का तापमान बदल रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अंटार्कटिका और उत्तरी ध्रुव की बर्फ पिघलने से दुनिया के तटीय शहरों डूब में आने का खतरा मंडरा रहा है। कई वैश्विक रिपोर्ट्स बताती हैं कि यदि कार्बन उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो हालात और बिगड़ जाएंगे। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट बताती है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अब शायद बस एक आखिरी मौका ही बचा है और इस मौके का फायदा अगले आठ सालों में ही उठाया जा सकता है। आज पर्यावरण दिवस पर हम जानेंगे कि ग्लोबल वार्मिंग के किस खतरे के प्रति आगाह कर रही हैं रिपोर्ट्स और क्या कह रहे हैं पर्यावरण विशेषज्ञ?
वर्ष 2021-22 रहे पिछले 2 हजार साल में सबसे ज्यादा गर्म, क्या कह रहे विशेषज्ञ- देश की वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ सीमा जावेद ने इंडिया टीवी डिजिटल को बताया कि पिछले 2000 साल के इतिहास में इतनी गर्मी नहीं पड़ी, जितनी वर्ष 2021—2022 में पड़ी है।
- विशेषज्ञ एक रिपोर्ट का हवाला बताते हुए कहती हैं कि जितनी ग्लोबल वार्मिंग अब तक हुई है, हीटवेव आने का खतरा भारत—पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में 30 गुना बढ़ गया है।
- अब तक पृथ्वी की सतह का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुका है। अब कसर सिर्फ 0.4 डिग्री की रह गई है। अगले कुछ साल में उत्सर्जन नहीं घटा तो 2 डिग्री औसत तापमान को पार कर जाएगी ग्लोबल वार्मिंग। यह दुनिया के लिए भयावह स्थिति होगी। जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते में तय किया गया है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक ही हमें औसत तापमान को सीमित रखना है।
- पर्यावरणविद ने कहा कि हजारों सालों से इतनी छेड़छाड़ धरती के वातावरण से नहीं हुई, जितने पिछले 172 साल में हमने पर्यावरण से छेड़छाड़ की है। ऐसा करके हमने अपने विनाश का खुद प्रबंध किया है। सभी रिपोर्ट्स यही कह रही हैं कि अभी भी संभल जाएं नहीं तो इंसान की प्रजाति भी इतिहास बन जाएगी।
जल रहे फॉसिल्स फ्यूल, धधक रही ग्लोबल वार्मिंग की आग
पृथ्वी के बीते 2000 सालों के इतिहास की तुलना में अब बीते कुछ दशकों में धरती का तापमान बेहद तेज़ी से बढ़ रहा है। इस घटनाक्रम में सीधे तौर पर इंसानों की भूमिका साफ दिख रही है। दशकों से लगातार वैज्ञानिक बता रहे हैं कि जीवाश्म ईंधन के जलने से ग्लोबल वार्मिंग की आग और धधक रही है। हालांकि उन तमाम वैज्ञानिक प्रमाणों के बावजूद न तो जीवाश्म ईंधन यानी फॉसिल्स फ्यूल कंपनियों और सरकारों की जवाबदेही तय हो पा रही है, और न ही उनके विरुद्ध कोई खास प्रतिबंध की कोई कार्रवाई की जाती है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) की तीसरी किस्त (WG3) बताती है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अब शायद बस एक आखिरी मौका ही बचा है और इस मौके का फायदा अगले आठ सालों में ही उठाया जा सकता है।
वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 45 फीसदी तक घटाना होगा, 3 बातों से समझें
- सरकारों को इस दशक के अंत तक कार्बन उत्सर्जन को कम से कम 45 प्रतिशत तक कम करने के लिए नीतियों और उपायों को तेजी से पेश करना पड़ेगा। IPCC की इस WG3 रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बताया है कि दुनिया अपने जलवायु लक्ष्यों को कैसे पूरा कर सकती है।
- रिपोर्ट से साफ़ है कि 2050 तक 'नेट-जीरो' तक पहुंचना दुनिया को सबसे खराब स्थिति से बचने में मदद करेगा। हालांकि रिपोर्ट यह भी कहती है कि मौजूदा हालात ऐसे हैं कि 1.5 या 2 डिग्री तो दूर, हम 2.7 डिग्री की तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं।
- एक और महत्वपूर्ण बात जो यह रिपोर्ट सामने लाती है कि नेट ज़ीरो के नाम पर अमूमन पौधारोपण या कार्बन ओफसेटिंग की बातें की जाती हैं। मगर असल ज़रूरत है कार्बन उत्सर्जन को ही कम करना। न कि हो रहे उत्सर्जन को बैलेंस करने कि गतिविधियों को बढ़ावा देना।
महाविनाश से बचने का सिर्फ एक ही रास्ता, ग्रीनहाउस गैसों पर कसें लगाम
पर्यावरण विशेषज्ञ बताते हैं कि कार्बन उत्सर्जन को यदि कम नहीं किया तो यकीनन दुनिया विनाश की कगार पर है। विकसित देशों ने बहुत ज्यादा कार्बन उत्सर्जन कर दिया है। अब विकासशील एशियाई देशों में भी कार्बन एमिशन ज्यादा हो गया है। अब यही रास्ता बचा है कि दुनिया के देश अपना ग्रीन हाउस गैसों उत्सर्जन 2030 तक आधा कर दें, तभी तो हम महाविनाश से बच सकते हैं।
बढ़ रहा रेगिस्तान का दायरा, कट रहे जंगल
पर्यावरण विषय पर शोध करने वाली संस्था डब्ल्यूआरआई इंडिया की विशेषज्ञ मधु वर्मा ने इंडिया टीवी डिजिटल को बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण रेगिस्तान का आकार भी बढ़ रहा है। वहीं आबादी बढ़ने के कारण लोग जंगल के लिए पेड़ लगाना तो दूर, अंधाधुंध पेड़ों की कटाई कर रहे हैं। हमारे देश की ही बात करें तो 33 फीसदी भाग पर जंगल होना जरूरी है। इसके लिए प्लांटेशन करना और उन्हें बचाने की जिम्मेदारी सरकार और समाज दोनों स्तर पर समझना होगी।