इसरो ने आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में लांच कर दुनिया में अपना कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। आदित्य एल 1 अब सूर्य की कक्षा में स्थापित होने वाला है। भारतीय सोलर मिशन आदित्य एल-1 कल यानी 5 से 7 जनवरी के बीच अपनी मंजिल एल-1 यानी लैग्रेंज प्वाइंट-1 पर पहुंच जाएगा। इस सफलता के साथ ही भारत सोलर मिशन के क्षेत्र में दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा। इसके बाद इसरो सूरज की कई अनसुलझी गुत्थी की तह तक जाएगा। बता दें कि सूर्य की दूरी धरती से तकरीबन 151.40 मिलियन किलोमीटर है। इसके लिए हम देश में स्थित कई वेदशाला से स्टडी भी कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हमें सूर्य की स्टडी करने के लिए अतंरिक्ष में आदित्य एल-1 की जरूरत क्यों पड़ी?
प्रो. वागिश मिश्रा के साथ खास बातचीत
इस बारे में जानने के लिए इंडिया टीवी ने इंडियन इंस्टीट्यट ऑफ एस्ट्रो फिजिक्स के साइंटिस्ट प्रो. वागिश मिश्रा के साथ खास बातचीत की। बातचीत में प्रो. वागिश मिश्रा ने बताया कि देश में स्थित कई वेदशाला से हम सूर्य के बारे में स्टडी कर रहे हैं, पर सूर्य की UV X-Ray किरणें के बारे में जमीन से नहीं जाना जा सकता क्योंकि ये किरणें धरती के वातावरण में आकर घुल मिल जाती है। ऐसे में हमें अंतरिक्ष में जाकर इन किरणों के बारे में जानने की जरूरत पड़ी इसलिए हमने आदित्य एल-1 को स्पेस में भेजा। प्रो. वागिश मिश्रा ने बताया कि इंडियन इंस्टीट्यट ऑफ एस्ट्रो ने इसरो की मदद से एक पैलोड (VLC (कोनोग्राफ) बनाया जो इस सूर्य मिशन काफी काम आएगा।
लैग्रेंज प्वाइंट-1 क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
पृथ्वी की सूर्य की दूरी करीबन 15 हजार करोड़ है, वहीं आदित्य एल-1 सूर्य की कक्षा के लैग्रेंज प्वाइंट 1 जिसकी दूरी 15 लाख किलोमीटर है। ऐसे में सवाल उठता है कि लैग्रेंज प्वाइंट 1 क्यों इतना महत्वपूर्ण है? इसका जवाब देते हुए प्रोफेसर ने बताया कि ये सच है कि हम लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर जा रहे हैं, ऐसे में हम सूर्य से 14 हजार किलोमीटर दूर हैं। पर हम एक विशेष प्वाइंट पर जा रहे हैं जहां से हम बिना किसी बाधा के 24 घंटे सूर्य की निगरानी कर सकेंगे। प्रोफेसर ने आगे बताया कि ये चंद्रमा की दूरी से 4 गुना अधिक है। इस प्वाइंट यानी L पर पृथ्वी व सूर्य दोनों की गुरूत्वाकर्षण बल दोनों सामान है, यहां से सैटेलाइट स्थिर होकर काम कर सकती है।
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