Gender Gap: भारत में जेंडर गैप क्यों बढ़ रहा है, इसके पीछे की बड़ी वजह क्या है? दुनिया में कौन से नंबर पर है हमारा देश
Gender Gap: विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा दी गई लैंगिक समानता रैंकिंग के अनुसार भारत विश्व स्तर पर (146 देशों के बीच) 135वें स्थान पर खिसक गया है। इसका मतलब यह है कि यह तालिबान शासित अफगानिस्तान से केवल 11 रैंक ऊपर है, जहां महिलाओं के स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध है।
Highlights
- 2016 में देश दुनिया में नौवें स्थान पर था
- यहां भारत का स्कोर 60 से 64 फीसदी के बीच है
- तुम एक लड़की हो तुम्हारा एक दायरा है
Gender Gap: विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा दी गई लैंगिक समानता रैंकिंग के अनुसार भारत विश्व स्तर पर (146 देशों के बीच) 135वें स्थान पर खिसक गया है। इसका मतलब यह है कि यह तालिबान शासित अफगानिस्तान से केवल 11 रैंक ऊपर है, जहां महिलाओं के स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध है। भारत के अन्य पड़ोसी देशों - नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, चीन और श्रीलंका की रैंकिंग काफी बेहतर स्तिथि में है। ये विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि 6 साल पहले, 2016 में, भारत दुनिया में 87वें स्थान पर था। WEF के अनुसार, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत शामिल है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में जेंडर गैप को बराबर करने में लगभग 200 साल अधिक समय लग जाएंगे। जब महिलाओं के बीच राजनीतिक सशक्तिकरण की बात आती है तो मुख्य रूप से भारत की वैश्विक रैंक के कारण यह अंतर बढ़ रहा है। भारत इस समय विश्व में 48वें स्थान पर है। हालांकि 2021 में ये नंबर बढ़ा था लेकिन 2022 में आकंड़े सहीं हुए हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में देश दुनिया में नौवें स्थान पर था। 2017 में यह रैंक गिरकर 15, 2018 में 19 और फिर 2021 में 51 हो गई। "राजनीतिक सशक्तिकरण में पिछले 50 वर्षों से महिलाओं के राज्य के प्रमुख के रूप में काम करने वाले वर्षों की घटती हिस्सेदारी के कारण गिरावट दर्ज की गई है, "
वे कौन से पैरामीटर हैं जिनमें देश का प्रदर्शन खराब रहा?
भारत में स्वास्थ्य और उत्तरजीविता, और आर्थिक भागीदारी और अवसर में सबसे कम रैंक है। दोनों मापदंडों में देश ने 146 देशों में 143वां स्थान पर है। इन मापदंडों में भारत का स्कोर और रैंकिंग हमेशा कम रही है। रिपोर्ट के अनुसार, जन्म के समय लिंगानुपात कम होने के कारण पूर्व में रैंक निम्न रही है। नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में जन्म लेने वाले बच्चों के लिए जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाओं का था। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अनुमान लगाया है कि जन्म के समय प्राकृतिक लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर लगभग 952 महिलाओं का है।
जब आर्थिक भागीदारी और अवसर की बात आती है, तो आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय महिलाओं में श्रम बल की भागीदारी दर पुरुषों में 57.75 प्रतिशत के विपरीत सिर्फ 23.15 प्रतिशत है। एनएफएचएस 2019-21 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल 25.2 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं, जबकि सर्वेक्षण में शामिल 74.8 प्रतिशत पुरुषों के पास उस समय नौकरी थी। जेंडर गैप रिपोर्ट कहती है, "सबसे अधिक असमान अर्थव्यवस्थाएं जिनके पास 65 फीसदी से कम संपत्ति है, वे हैं नाइजीरिया, अर्जेंटीना, मैक्सिको, तुर्की और भारत।" इसका मतलब यह है कि इन देशों में पुरुषों द्वारा सेवानिवृत्ति के समय अर्जित की गई संपत्ति का औसतन 65 प्रतिशत से भी कम महिलाएं जमा करती हैं। यहां भारत का स्कोर 60 से 64 फीसदी के बीच है।
इसे सही करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
ये रिपोर्ट भारत में कार्यालयों में महिलाओं की संख्या में बढ़ती असमानता की आलोचना करती है। महिला आरक्षण विधेयक को पारित करना, जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में सभी सीटों का 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रस्ताव है, इस स्थिति को बेहतर बना सकता है। उद्योगों में लैंगिक वेतन अंतर को दूर करने के लिए भी उपाय किए जा सकते हैं। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुमानों के अनुसार, भारत में पुरुष श्रम आय का 82 प्रतिशत कमाते हैं जबकि महिलाएं इसका 18 प्रतिशत कमाती हैं। साथ ही, जेंडर बजट के लिए अधिक धन आवंटित करने की गुंजाइश है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को पुरुषों की तरह ही सामाजिक-आर्थिक लाभ प्राप्त हों।
भारतीय महिलाएं इसे लेकर क्या सोचती है?
इस संबंध में हमने कई भारतीय महिलाओं से बात किया तो लगभग हर महिलाओं की सोच एक तरह देखा गया। उनका कहना था कि बचपन से ही हमे ये बताया जाता कि तुम एक लड़की हो तु्म्हारा एक दायरा है। हमें बताया जाता है कि पिंक कलर तु्म पर काफी अच्छी दिखेगी। जब हम स्कुल में पढ़ने के लिए एक भेजा जाता है तो अगर मेरा कोई भाई है तो वो अच्छे स्कुल में जाता है लेकिन हमें या स्कुल जाने को नहीं मिलेगा अगर जाने के लिए मिल भी गया तो किसी साधारण स्कुल में भर्ती करवा दिया जाएगा। हमे बचपन से एक बोझ के सामान देखा गया है। हमारे समाज में सबसे बड़ी समस्या समाज की सोच है, जिन्हें लगता है कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन इस सोच को हमने तोड़ा है। आज हम हर जगह अपनी पहचान बना रहे हैं। हालांकि ये इस सामजिक सोच को तोड़ने में काफी समय लगेगा।