बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को रांची की स्पेशल कोर्ट ने दोषी करार दिया है। लालू को जेल भेज दिया गया है। चारा घोटाले के पांचवे मामले पर कोर्ट 21 फरवरी को सजा सुनाएगा। आज लालू प्रसाद यादव के लिए चारा घोटाले का ये मामले सबसे बड़ी दिक्कत बन गया है। लेकिन कभी उन्हें इस मामले में गिरफ्तार करने पहुंचीं CBI की टीम को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।
लालू यादव को गिरफ्तार करने के लिए CBI की टीम ने उस समय पुलिस से भी मदद मांगी थी, लेकिन कोई मदद नहीं मिल पाई थी। इस किस्से का जिक्र लालू प्रसाद यादव ने अपनी जीवनी 'गोपालगंज से रायसीना: मेरी राजनीतिक यात्रा' में भी किया है। लालू लिखते हैं, 'सीबीआई के जॉइंट डायरेक्टर यू.एन बिस्वास मुझे गिरफ्तार करने पर आतुर थे। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल मेरी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। मैंने भी घोषणा कर दी थी कि मैं निर्धारित तिथि पर खुद आत्मसमर्पण कर दूंगा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे गिरफ्तार करने पर क्यों आतुर थे।'
लालू प्रसाद यादव आगे लिखते हैं, ‘मुझे गिरफ्तार करने के लिए बिस्वास दानापुर के सेना मुख्यालय पहुंच गए थे और वहां अधिकारियों से मदद मांगी थी। ये सब देखकर सेना के अधिकारी भी हैरान रह गए थे। क्योंकि ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था कि एक सामान्य व्यक्ति के गिरफ्तार करने के लिए सशस्त्र बलों से संपर्क किया गया हो। सेना ने बिस्वास की मदद की गुहार को खारिज कर दिया था। मैं भी सीबीआई अधिकारियों की कार्रवाई से हैरान रह गया था।’
बिस्वास ने भी इसका जिक्र करते हुए एक किस्सा बताया था, हमने पुलिस और प्रशासन सबसे मदद मांगी थी। जैसे ही टीम लालू यादव के घर पहुंची तो हमने घेर लिया गया था। कैबिनेट सेक्रेटरी को भी इस बारे में सूचना दी गई थी, लेकिन कोई मदद नहीं मिली थ। बता दें, 1997 में पहली बार लालू यादव की चारा घोटाले में गिरफ्तारी हुई थी। लाख कोशिशों के बाद बी सीबीआई की टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा था और बाद में लालू ने खुद कोर्ट में सरेंडर कर दिया था।
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