कहानी उस रात की... जब 2 साल के वरुण के साथ मेनका को इंदिरा गांधी ने घर से निकाला था
मेनका गांधी जिन्हें आज आप एक नेता के रूप में जानते हैं वो एक मॉडल और एक पत्रकार भी रह चुकी हैं। राजनीति में तो हैं लेकिन भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू गांधी परिवार की विरासत नहीं संभाल रहीं। मेनका जब मॉडलिंग कर रही थीं तब उनकी एक तस्वीर को देखकर संजय गांधी को उनसे मोहब्बत हो गई थी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी आज 26 अगस्त को अपना 68वां जन्मदिन मना रही हैं। जब भी गांधी परिवार के सदस्यों का राजनीति में जिक्र होता है, तो मेनका गांधी का नाम सोनिया गांधी से पहले आता है। इसका कारण यह है कि मेनका गांधी ने सोनिया गांधी से पहले भारतीय राजनीति में कदम रखा था। मेनका गांधी जिन्हें आज आप एक नेता के रूप में जानते हैं वो एक मॉडल और एक पत्रकार भी रह चुकी हैं। राजनीति में तो हैं लेकिन भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू गांधी परिवार की विरासत नहीं संभाल रहीं। मेनका गांधी का जन्म राजधानी नई दिल्ली में एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता तरलोचन सिंह आनंद सेना में अधिकारी थे। मेनका गांधी की शुरुआती पढ़ाई लॉरेंस स्कूल से हुई। स्नातक की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से हासिल की। जेएनयू से भी मेनका ने पढ़ाई की। कॉलेज के दिनों में उन्होंने कई फैशन शो में हिस्सा लिया। कॉलेज के बाद मॉडलिंग और फिर बॉम्बे डाइंग के विज्ञापन के लिए चुनी गई।
फैशन मॉडल से लेकर गांधी परिवार की बहू तक, ऐसा था मेनका का सफर
आप सब ये तो जानते होंगे कि मेनका के पति का नाम संजय गांधी था। इंदिरा गांधी के छोटे बेटे। मेनका जब मॉडलिंग कर रही थीं तब उनकी एक तस्वीर को देखकर संजय गांधी को उनसे मोहब्बत हो गई। इसके बाद जुलाई 1974 में दोनों ने सगाई की। इसके ठीक 2 महीने बाद ही 23 सिंतबर 1974 में दोनों शादी के बंधन में बध गए। संजय और मेनका के विवाह के कुछ साल बाद कांग्रेस पार्टी थोड़ा सा डगमगा सी गई।
आपातकाल के दौर में नेता के रूप में संजय गांधी का उदय हुआ। 1977 के चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद संजय और मेनका गांधी ने कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने की ठानी। मेनका गांधी ने सूर्या नामक एक राजनीतिक पत्रिका शुरू की। 1980 में कांग्रेस की फिर से सत्ता पर काबिज हुई। ये जीत काफी हद तक संजय गांधी की रणनीति और मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या के कारण मिली।
जब इंदिरा गांधी से बढ़ गई तकरार
इसी साल एक प्लेन दुर्घटना में संजय गांधी की मौत हो गई। इसी दौरान राजीव गांधी कांग्रेस के बड़े चेहरे बनकर उभरे। कहते हैं कि इस बात से मेनका गांधी काफी नाराज हुईं और इंदिरा गांधी से तकरार बढ़ गई। महज 23 साल की उम्र मेनका गांधी को सास इंदिरा गांधी ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों द्वारा आयोजित रैलियों में शामिल होने और सत्ता हासिल करने के शक में उन्हें घर से निकाल दिया था।
बिना सामान मेनका को घर से निकाला
इंदिरा गांधी 28 मार्च 1982 को विदेश से लौट कर भारत पहुंची थीं। इसके बाद सास इंदिरा और बहू मेनका के बीच बातचीत का दौर शुरू हुआ। सवाल-जवाब के बीच बात इतनी बढ़ गई कि इंदिरा ने मेनका से घर छोड़ने तक के लिए कह दिया था। इस पर मेनका ने घर छोड़कर न जाने की बात भी कही थी, लेकिन इंदिरा गांधी अपने बात पर डटी रहीं। मेनका गांधी ने इस बात की जानकारी अपनी बहन को दी थी। इंदिरा ने मेनका को बिना सामान के घर छोड़कर जाने के लिए कहा था। इस पर मेनका की बहन ने आपत्ति जताई थी। मेनका की बहन ने कहा ये घर संजय गांधी का भी है, उसके जवाब में इंदिरा ने कहा कि ये घर प्रधानमंत्री का है। तब रात करीब 11 बजे मेनका गांधी अपने दो साल के बेटे वरुण गांधी को लेकर घर से चली गई थीं।
संजय गांधी के नाम पर बनाई पार्टी
वरुण गांधी की जिम्मेदारी के साथ उनका जीवन बड़ा कठिनाइयों के दौर से गुजरा। ससुराल से निकलने के बाद मेनका गांधी ने किताबें और मैगजीन के लिए लिखना शुरू किया और धीरे धीरे खुद को स्थापित करने की कोशिश की। फिर साल 1983 में मेनका ने संजय गांधी के नाम पर राष्ट्रीय संजय मंच पार्टी बनाई। साल 1984 में मेनका गांधी ने अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। मगर चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त मिली। साल 1988 में मेनका गांधी ने अपनी पार्टी का विलय जनता दल के साथ किया। 1989 में जनता दल के सहयोग से मेनका ने अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता और केंद्रीय मंत्री भी बनीं।
पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ा, जीत हासिल की
1992 में उन्होंने पीपल फॉर एनिमल्स नामक संस्था शुरू की। साल 1996 और 1988 से मेनका गांधी ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से निर्दलीय चुनाव लड़ा और इसमें उन्हें जीत भी दर्ज की। 1999 में निर्दलीय के रूप भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में उन्हें सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री बनी। साल 2004 में अपने बेटे वरुण गांधी के साथ भाजपा का दामन थमा। मेनका पीलीभीत से 6 बार सांसद रही।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मेनका गांधी को बाल विकास मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था। दूसरे कार्यकाल में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरा। इस चुनाव में उन्हें समाजवादी पार्टी के रामभुआल निषाद से 40 हजार मतों से हार का सामना करना पड़ा।
बेबाक अंदाज की वजह से अलग नेता के तौर पर जानी जाती हैं मेनका
लेकिन, आज भी मेनका गांधी महिलाओं और पर्यावरण के मुद्दों पर जमकर बोलती है। देश के किसी भी जानवर के साथ अमानवीय व्यवहार सामने आता है तो सबसे पहले मेनिका गांधी ही मुखर होकर बोलती है। मेनिका गांधी अपने इस बेबाक अंदाज की वजह से भाजपा में रहते हुए भी अलग नेता के तौर पर जानी जाती है। (IANS इनपुट्स के साथ)