"मैं वापस जरूर आऊंगा, चाहे तिरंगा हाथ में लेकर या फिर तिरंगे में लिपटकर, लेकिन आऊंगा जरूर।" ये शब्द हैं कैप्टन विक्रम बत्रा के। साल 1999 में कारगिल की लड़ाई शुरू होती है। भारत और पाकिस्तान के बीच। इसी लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हुए थे। कैप्टन विक्रम बत्रा जम्मू कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर कैप्टन तैनात थे। कारगिल युद्ध में भारत के इस संघर्ष को ऑपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है। इसे कारगिल जिले और एलओसी के साथ अन्य कई स्थानों पर एक साथ लड़ा गया, तब जाकर भारतीय सेना को इस लड़ाई में जीत मिली। इस युद्ध को जीतने में कैप्टन विक्रम बत्रा ने अहम किरदार निभाया था।
सैनिक को बचाने में लगी गोली
7 जुलाई 1999 को एक अहम चोटी पर जिसपर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था, को जीतने के इरादे से विक्रम बत्रा की बटालियन आगे बढ़ती है। इस दौरान उनकी बटालियन को भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ता है। अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे विक्रम बत्रा सफलतापूर्वक चोटी पर कब्जा कर लेते हैं। इसी दौरान विक्रम बत्रा को दुश्मन सेना की गोलियां लग जाती हैं। दरअसल विक्रम बत्रा को जब यह एहसास होता है कि उनके एक साथ सैनिक राइफलमैन संजय कुमार को गोली लगी है और वे गंभीर रूप से घायल हैं।
विक्रम बत्रा ने दिलाई कारगिल में जीत
तब विक्रम बत्रा उनकी मदद करने के लिए बिना किसी चीज के परवाह किए बगैर आगे बढ़ते हैं। उनके साथी संजय कुमार एक खुली पहाड़ी पर फंसे हुए थे। बिना किसी हिचकिचाहट के बत्रा ने वापस जाकर उन्हें बचाने का फैसला किया। खतरनाक हालातों में वह भारी गोलीबारी के बीच संजय कुमार तक पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं और उन्हें सफलतापूर्वक वहां से निकाल लेते हैं। हालांकि इसी दौरान पहाड़ी से नीचे उतरते वक्त कैप्टन बत्रा को गोली लग गई और वह घायल हो गए। इसके बाद भी वह लड़ते रहे। लेकिन अंत में वे शहीद हो गए। बता दें कि 9 सितंबर 1974 को विक्रम बत्रा का जन्म हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। उनके जीवन पर एक फिल्म भी बन चुकी है।
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