Subhash Chandra Bose Death Anniversary: सुभाष चंद्र बोस की अनटोल्ड स्टोरी, जानें क्रूरतम तानाशाह हिटलर को क्यों मांगनी पड़ी थी नेताजी से माफी
Subhash Chandra Bose Death Anniversary: देश की आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस का निधन कब हुआ। इस बारे में कई तरह की किंवदंतियां हैं। मगर कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को एक हवाई यात्रा के दौरान उनका दुर्घटना में निधन हो गया।
Highlights
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि आज
- सुभाष चंद्र बोस से जर्मनी के तानाशाह हिटलर को भी मांगनी पड़ी थी माफी
- नेताजी ने महात्मा गांधी को दिया था राष्ट्रपिता का नाम
Subhash Chandra Bose Death Anniversary: देश की आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस का निधन कब हुआ। इस बारे में कई तरह की किंवदंतियां हैं। मगर कहा जाता है कि 1945 में हुए दूसरे विश्वयुद्ध में जब अमेरिका ने जापान के दो प्रमुख शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दिया तो इसी के कुछ दिन बाद 18 अगस्त 1945 को एक हवाई यात्रा के दौरान नेताजी का निधन हो गया। तब से 18 अगस्त को प्रतिवर्ष उनकी पुण्य तिथि मनाई जाती है, लेकिन उनका निधन अब तक एक बड़ा रहस्य बना हुआ है। क्योंकि भारत सरकार के पास उनके निधन के बारे में कोई पुख्ता दस्तावेज मौजूद नहीं है।
नेता सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, बंगाल प्रेसिडेंसी के ओडिसा डिवीजन में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए आनर्स की डिग्री प्राप्त की थी। वर्ष 1941 से 40 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में रहे। इसके बाद 1939 में फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इसके बाद दक्षिण पूर्व एशिया में जापान के सहयोग से अगस्त 1942 में 40 हजार से अधिक भारतीय नौजवानों और नवयुतियों की फौज तैयार कर आजाद हिंद फौज का गठन किया। हालांकि इस फौज का गठन पहली बार वर्ष 1945 में रास बिहारी बोस ने किया था। इसका मकसद अंग्रेजों से लड़कर भारत को स्वतंत्रता दिलाना था।
जब दुनिया के दुर्दांत तानाशाह हिटलर ने मांगी सुभाष चंद्र बोस से माफीः जर्मनी के शासक और दुनिया के दुर्दांत तानाशाह रुडोल्फ हिटलर ने वैसे तो पूरी दुनिया पर अपना प्रभाव जमा रखा था। हिटलर के सामने किसी भी बात को लेकर विरोध कर पाना दुनिया के किसी देश के लिए आसान नहीं था। वह क्रूरतम तानाशाह था । 29 मई 1942 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जर्मनी के तानाशाह रुडोल्फ हिटलर से मिले। मगर हिटलर भारत और भारतीयों में कोई खास रुचि नहीं रखने वाला था। हिंदुस्तान की आजादी में मदद करने का हिटलर से कोई आश्वासन नहीं मिलने से नेताजी को निराशा भी हुई। मगर इस दौरान नेताजी को पता चला कि कई वर्ष पहले हिटलर ने माइन काम्फ नामक आत्मकथा में भारतीयों की बुराई की थी। इसे देखने के बाद सुभाष चंद्र बोस नाराज हो गए।
उन्होंने हिटलर से भारतीयों की बुराई किए जाने का कड़ा विरोध जाहिर किया। नेताजी का कड़ा रुख देखकर हिटलर भी हैरान रह गया। हिटलर की किसी भी सफाई को सुभाष चंद्र बोस मानने को तैयार नहीं हुए। आखिरकार हिटलर को भारतीयों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी लिखने को लेकर न सिर्फ माफी मांगनी पड़ी, बल्कि अगले संस्करण में उन शब्दों और वाक्यों को हटाने का भी बचन देना पड़ा। तब जाकर सुभाष चंद्र बोस शांत हुए। तभी हिटलर समझ गया कि सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी भारतीय हैं, जिनके रग-रग में मां भारती और भारतीय लोगों के लिए प्रेम है।
जब आजादी से पहले ही नेताजी ने बना दी भारत की अस्थाई सरकारः नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए लगातार विदेशों का भी दौरा किया करते थे और विदेश के प्रमुख नेताओं का अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ समर्थन जुटा रहे थे। सुभाष चंद्र की इस रणनीति से अंग्रेज भी घबराने लगे थे। नेताजी इतने अधिक साहसी थे कि देश को आजादी मिलने से पहले ही आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से उन्होंने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बना डाली। नेताजी का यह कदम अंग्रेजों के लिए बड़ी चुनौती बन गया। अंग्रेज इस सरकार को भंग करने का प्रयास करने लगे। सुभाष चंद्र बोस की इस अस्थाई सरकार को जापान, जर्मनी, कोरिया, चीन, इटली, फिलीपींस आयरलैंड समेत विश्व के 11 देशों ने मान्यता भी दे दी। इससे अंग्रेज और अधिक मुश्किल में पड़ गए।
आजाद हिंद फौज ने कर दिया अंग्रेजों पर आक्रमणः वर्ष 1944 में आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजी हुकूमत पर हमला बोल दिया। इस दौरान कई भारतीय राज्यों को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त भी करवा लिया। छह जुलाई 1942 को उन्होंने रंगून के रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक संदेश प्रसारित करके अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में मिली इस विजय को लेकर उनसे आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगी।
महात्मागांधी को दिया राष्ट्रपिता का नामः नेताजी ने 04 जून 1944 को सिंगापुर के एक रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के लिए एक संदेश प्रसारित कर उन्हें पहली बार राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया। इसके बाद छह जुलाई 1944 को भी दोबारा सिंगापुर से महात्मा गांधी के नाम संदेश प्रेसित करते फिर से उन्हें राष्ट्रपिता कहा था। देश को आजादी मिलने के बाद भारत सरकार ने भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की मान्यता दे दी। तब से वह राष्ट्रपिता के नाम से जाने जाने लगे।