इस साल इतने भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता, सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े
भारत की नागरिकता छोड़ने वालों के कुछ प्रमुख कारण हैं। जिससे लोग यहां से निकल रहे हैं। इस साल के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं।
पिछले कुछ सालों में नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। अगर आंकड़ों के मुताबिक बात करें तो नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 2017 में 1,33,049 थी और पांच साल बाद यानी 31 अक्टूबर, 2022 तक यह बढ़कर 1,83,741 हो गई है।
आंकड़े चौंकाने वाले
विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन द्वारा शुक्रवार को लोकसभा में एक लिखित जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि 2015 में अपनी भारतीय नागरिकता को छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या 1,31,489, 2016 में 1,41,603, 2017 में 1,33,049, 2018 में 1,34,561, 2019 में 1,44,017, 2020 में 85,256 और 2021 में 1,63,370 थी। वहीं उन्होंने जानकारी साझा किया कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के उन विदेशी नागरिक, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षो में भारतीय नागरिकता ली है। इन देशों से लोग तेजी से भारतीय नागरिकता को अपना रहे हैं। "मंत्रालय के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान को छोड़कर विदेशी नागरिकों की संख्या 93 (2015 में), 153 (2016 में), 175 (2017 में), 129 (2018 में), 113 (2019 में), 27 (2020 में), 42 (2021 में) और 60 (2022 में) थी।"
देश क्यों छोड रहे हैं?
विशेषज्ञों की मानें तो भारत की नागरिकता छोड़ने वालों के पास कुछ प्रमुख वजहें हैं। इसमें सबसे पहली वजह व्यापारिक सुरक्षा। दरअसल, भारत के धनी लोगों को लगता है कि भारतीय सरकार उन्हें व्यापार के अनुकूल माहौल नहीं बना कर दे पा रही है, जिसकी वजह से वह किसी और देश में निवेश कर वहीं की नागरिकता ले लेते हैं। दूसरी बड़ी वजह है लिविंग स्टैंडर्ड। भारत के अमीर लोगों को लगता है कि जो लिविंग स्टैंडर्ड उन्हें अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा में मिल जाएगा वह उन्हें यहां नहीं मिलेगा।
शिक्षा एक महत्वपूर्ण कारण
भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों में बसने वाले लोगों को लगता है कि एजुकेशन के मामले में पश्चिमी देश भारत से बेहतर हैं। आपको बता दें, साल 2020 के मुकाबले 2021 में भारतीय छात्रों की संख्या अमेरिका में लगभग 12 फ़ीसदी बढ़ी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते कुछ सालों में देखा गया है कि पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाली भारतीय छात्रों में से करीब 70 से 80 फ़ीसदी युवा देश वापस नहीं लौटते हैं। बेहतर भविष्य और करियर को देखते हुए वह विदेश की नागरिकता लेकर वहीं बस जाते हैं।