नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जीवन पर महात्मा गांधी के विचारों का भी प्रभाव था, भले ही आजादी की जंग में गांधीजी से उनके मतभेद रहे हों, लेकिन बोस ने ही गांधीजी सबसे पहले राष्ट्रपिता की उपाधि दी थी। 1938 और 1939 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। हालांकि, 1939 में महात्मा गांधी और कांग्रेस आलाकमान के साथ मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया औऱ पार्टी से अलग हो गए। जब सुभाष जेल में थे तब गांधीजी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इंकार कर दिया। नेजाती ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने का भरसक प्रयत्न किया। भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गांधी और कांग्रेस से नाराज हो गए। 1939 में महात्मा गांधी और कांग्रेस आलाकमान के साथ मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी से अलग हो गए।
जब रेडियो स्टेशन से नेताजी ने गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर किया था संबोधित
सुभाष चंद्र बोस भले ही महात्मा गांधी के विचारों से सहमत नहीं थे, लेकिन वे उनका काफी सम्मान करते थे। वे महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बुलाने वाले सबसे पहले शख्स थे। उन्होंने महात्मा गांधी से कुछ मुलाकातों के बाद ही उन्हें यह उपाधि दी। इसके बाद अन्य लोग भी गांधीजी को राष्ट्रपिता बोलने लगे। बोस ने रंगून के रेडियो चैनल से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए पहली बार राष्ट्रपिता कहा था।
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