Saudi arab-Iran-China: दुनिया के दो सबसे बड़े शिया और सुन्नी मुल्क ने चीन में दोस्ती का हाथ मिला लिया। शिया बहुल देश ईरान और सुन्नी मुल्क सऊदी अरब की दोस्ती ने अरब देशों की डिप्लोमेसी के समीकरण भी बदल दिए हैं। वहीं इस दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश भी दिया है कि जो काम अमेरिका न कर सका, वो चीन ने कर दिखाया। ईरान से अमेरिका के संबध लंबे समय से तनावपूर्ण हैं। वहीं पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के दौरे के बाद रियाद और वॉशिंगटन के रिश्तों में भी खटास आ गई थी। ऐसे में चीन ने अमेरिका को पसंद न करने वाले दोनों मुस्लिम देशों को की दोस्ती कराकर कई संदेश दिए हैं। चीन की अरब देशों में जो अहमियत शुक्रवार को हुई इस बैठक के बाद दोस्ती से बढ़ी है, वह कई मायनों में अहम है।
जिस तरह से सऊदी अरब और ईरान के बीच दोस्ती चीन में कराई गई। यह मिडिल ईस्ट और चीन दोनों के लिए 'गेम चेंजिम' पल था। दुनिया के सबसे बड़े शिया और सुन्नी मुल्क अपनी दशकों पुरानी प्रतिद्वंद्विता को भुलाकर एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं।
ईरान, अरब और चीन की करीबी अमेरिका के लिए चिंताजनक
अरब जगत की दोनों महाशक्तियां अपने राजनयिक संबंध दोबारा स्थापित करने के लिए करीब दो साल से बातचीत कर रही हैं। ऐसे में शुक्रवार की घोषणा आश्चर्यजनक लेकिन अपेक्षित थी। यह दोस्ती अमेरिका के लिए चिंताजनक हो सकती है क्योंकि ईरान के साथ उसके संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण हैं। पिछले साल बाइडन के दौरे के बाद रियाद और वॉशिंगटन के रिश्तों में भी खटास आ गई थी।
सबसे बड़ी बात यह कि इस मुलाकात की मेजबानी अमेरिका के 'सबसे बड़े दुश्मन' चीन ने की थी जो तेल-संपन्न क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। सऊदी अरब के साथ ईरान की बातचीत ऐसे समय पर हो रही है जब 2016 के परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, क्षेत्रीय गठबंधनों में अब बदलाव देखने को मिल रहा है। सऊदी अरब के अमेरिका के साथ संबंध हाल के वर्षों में काफी तनावपूर्ण हो गए हैं, जबकि क्षेत्र में चीन का दखल बढ़ गया है।
मिडिल ईस्ट में बिजनेस बढ़ाना चाहता है चीन, कम होगा अमेरिकी वर्चस्व!
वॉशिंगटन के विपरीत बीजिंग ने मिडिल ईस्ट में फैली कई प्रतिद्वंद्विताओं को खत्म करके दिखाया है। चीन ने अरब जगत को मानवाधिकारों पर पश्चिम की तरह 'ज्ञान' दिए बिना आर्थिक संबंधों को मजबूत करके पूरे क्षेत्र के देशों के साथ अच्छे राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं। चीन कई साल से संघर्षों से जूझ रहे मिडिल-ईस्ट की नई कूटनीतिक सफलताओं की मेजबानी कर रहा है। साथ ही साथ वह अमेरिका के क्षेत्रीय वर्चस्व को भी कम करता जा रहा है।
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