आजादी मिलते ही पाकिस्तान से लड़ी गई थी पहली जंग, जानें Infantry Day का इतिहास
इंडियन आर्मी Infantry Day को हर्षोल्लास के साथ मना रही है। कश्मीर के बडगाम में सेना के शौर्य दिवस कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई बड़े नेता और अफसर भाग ले रहे हैं। लेकिन क्या आप को पता है आज के दिन क्या हुआ था। क्यों ये दिन हमारे देश के लिए खास है? इन सारे सवालों के जवाबों के लिए पढ़ें यहां।
आज 76वां Infantry Day है और यह दिन कश्मीर के लिए विशेष है, यहां आज शौर्य दिवस के रूप में कार्यक्रम मनाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और एलजी मनोज सिन्हा सेना के वरिष्ठ अधिकारी, पुलिस और सिविल अधिकारी भाग ले रहे हैं। बता दें कि देश भर के अन्य सैन्य ठिकानों पर भी Infantry Day मनाया जा रहा है।आज उन हजारों पैदल सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जा रही है, जिन्होंने कर्तव्य की राह में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे।
हर साल 27 अक्टूबर को देश की Infantry Day या पैदल सेना दिवस के रूप में पैदल सेना के सम्मान में मनाया जाता है। भारतीय सेना Infantry Day हर साल उन सैनिकों की याद में मनाती है, जिन्होंने देश के लिए लड़ाई लड़ी और कर्तव्य की राह में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। बता दें कि इस दिन भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से भारतीय क्षेत्रों की रक्षा की थी। इस दिन पाकिस्तान के कश्मीर हथियाने के नापाक इरादों को भारतीय सेना ने नेस्तनाबूद किया था। इन्हीं सैनिकों के सम्मान में 27 अक्टूबर को पैदल सेना दिवस मनाया जाता है।
Infantry Day का इतिहास
Infantry Day को स्वतंत्र भारत की पहली सैन्य कार्रवाई की याद के रूप में मनाया जाता है, ये जंग भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन ने 27 अक्टूबर को भारतीय धरती पर पाकिस्तानी सेना और लश्कर के हमलावरों के खिलाफ पहले हमले पर जीत हासिल करने के लिए लड़ी थी। ये लड़ाई, जब पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर को हथियाने की कोशिश की, तब 1947 में कश्मीर घाटी में लड़ी गई थी।
आज के दिन सिख रेजीमेंट की पहली टुकड़ी श्रीनगर एयरबेस पहुंची और इस जंग में अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया। उस समय भारतीय सेना ने कबायली आक्रमणकारियों को भारत की धरती से भागने पर मजबूर कर दिया। उस समय पकिस्तानी सेना कबायली आक्रमणकारियों के साथ श्रीनगर और जम्मू कश्मीर में दहशत मचा रहे थे। पकिस्तानी सैनिक कबायली हमलावरों के साथ श्रीनगर और जम्मू कश्मीर में तेजी से आंतक मचाते हुए आगे बढ़ रही थी। इन्हें रोकने के लिए लिंक रोड के जरिए सैनिकों को भेजने में अधिक समय लगता और घाटी पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के हाथों में आने का डर था।
ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 26 अक्टूबर की आधी रात में इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। मीटिंग के बाद नेहरू ने सिख रेजिमेंट को एयरफोर्स की सहायता से सीधे जंग के मैदान में उतारने का फैसला किया। 27 अक्टूबर की तड़के सुबह सैनिकों के एक टुकड़ी को एयरलिफ्ट किया गया और बाकियों को निजी एयरलाइन से भेजा गया।
उस समय सिख रेजिमेंट के पास केवल दो कंपनियां उपलब्ध थीं, 13 फील्ड रेजिमेंट की एक बैटरी, एक आर्टिलरी रेजिमेंट, इसे पैदल सेना की मुख्य भूमिका दी गई थी। 27 अक्टूबर को तड़के, इंडियन एयरफोर्स की दो विमानों से सैनिकों को एयरलिफ्ट किया गया और शेष 5 निजी एयरलाइंस से थे। 27 अक्टूबर को लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय की कमान में बटालियन श्रीनगर में उतरी।
लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय ने पहले श्रीनगर हवाई क्षेत्र को सुरक्षित किया और फिर आक्रमणकारियों को उनकी पटरियों पर रोकने के लिए बारामूला पहुंचे। वह उन्हें पकड़ने में सफल रहे और इस दौरान पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को पीछे धकेलने के लिए हवाई मार्ग से श्रीनगर में और ज्यादा सेना की टुकड़ी भेजे गए। आखिरकार, लेफ्टिनेंट कर्नल राय और हजारों सैनिकों ने इस कार्रवाई में अपना जीवन न्यौछावर कर दिए। लेफ्टिनेंट कर्नल राय मरणोपरांत देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार (महावीर चक्र) से सम्मानित किया गया। तभी से, हर साल पैदल सेना के उन हजारों सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए Infantry day मनाया जाता है।
क्या है Infantry Army
Infantry भारतीय सेना की सबसे बड़ी लड़ाकू शाखा है, जिसे "युद्ध की रानी" के रूप में भी जाना जाता है। यह भारतीय सेना की रीढ़ है और इसके सैनिक किसी भी युद्ध में मुख्य रूप से भूमिका निभाते हैं। इस सेना में शामिल सैनिकों में शारीरिक फिटनेस, आक्रामकता और अनुशासन आवश्यक बुनियादी गुण हैं। भारतीय सेना की Infantry इकाइयों को आधुनिक, सुसज्जित और प्रशिक्षित किया गया है, ताकि भारतीय सेना को दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनाया जा सके।