जम्मू-कश्मीर में फिर से मस्जिदों, मदरसों में पनाह ले रहे हैं आतंकवादी, सामने आई बड़ी जानकारी
कश्मीरी लोगों ने आतंकवादियों की मदद करना बंद कर दिया है और सरकार ने भी निगरानी बढ़ाने तथा आतंकियों को पनाह देने वाले घरों को जब्त करने का फैसला लिया है जिसके बाद से आतंकवादी संगठन पुराने तरीके अपना रहे हैं।
कश्मीर की जनता के बीच पनाह नहीं मिलने पर आतंकवादी फिर से मस्जिदों और मदरसों में अपने ठिकाने बना रहे हैं जिससे उन्हें न केवल सुरक्षा बलों से बचने में मदद मिलती है बल्कि किशोरवय लोगों को बरगलाने का मौका भी मिल रहा है।
कश्मीरी लोगों ने आतंकवादियों की मदद करना बंद कर दिया है और सरकार ने भी निगरानी बढ़ाने तथा आतंकियों को पनाह देने वाले घरों को जब्त करने का फैसला लिया है जिसके बाद से आतंकवादी संगठन पुराने तरीके अपना रहे हैं।
अधिकारियों के अनुसार, सरकार और सुरक्षा बलों दोनों के सतत प्रयासों से कश्मीर में आम जनता के आतंकवादियों को देखने के नजरिये में बड़ा बदलाव आया है। लोग अब आतंकवादियों को पनाह और अन्य मदद देने से गुरेज करने लगे हैं।
आतंकवादी हमलों के लिए मस्जिदों का कर रहे हैं इस्तेमाल-आतंकवादी 1990 के दशक की शुरुआत में हजरतबल दरगाह और चरार-ए-शरीफ में छिपते थे और सुरक्षा बलों से उनकी झड़पें होती थीं। हाल में हुई कुछ मुठभेड़ों, विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों के विश्लेषण से पता चला कि पाकिस्तान प्रायोजित दहशतगर्द पनाह लेने के लिए फिर से मस्जिदों और मदरसों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
अधिकारियों ने बताया कि पिछले कुछ सप्ताह में कुलगाम, नैना बटपोरा और चेवा कलां में हुई तीन मुठभेड़ों में यही बात देखने को मिली। आतंकवादियों ने जानबूझकर मस्जिदों और मदरसों में आसरा ले रखा था। उन्होंने पहचान छिपाने और सुरक्षा बलों को गोलीबारी या बल प्रयोग करने के लिए उकसाकर धार्मिक भावनाओं को भड़काने के दोहरे मकसद से यह किया।
सेना ने पिछले दिनों पुलवामा जिले में रऊफ नामक आतंकवादी को पकड़ा था। उसने पूछताछ करने वाले अधिकारियों को बताया कि आतंकियों ने एक मस्जिद में शरण ले रखी थी और जब भी सुरक्षा बल आते तो वे धर्म प्रचारक बन जाते।
पुलवामा जिले के चेवा कलां में मुठभेड़ में मारे गये जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादियों ने एक मस्जिद में पनाह ले रखी थी। इनमें से एक पाकिस्तानी नागरिक था। इस मदरसे को मौलवी नसीर अहमद मलिक ने 2020 में शुरू किया था। मलिक इससे पहले छह-सात साल तक जामिया मस्जिद में इमाम रहा। वह गांव में 4 से 10 साल तक के बच्चों को धार्मिक उपदेश देता था।
मलिक 2016 से पुलवामा, बडगाम, श्रीनगर, कुलगाम और अनंतनाग जिलों के अनेक गांवों से ‘जकात’ इकट्ठा करने के काम में शामिल रहा। चेवा कलां में मुठभेड़ वाली जगह से मिले दस्तावेजों से यह शक हकीकत में बदल गया कि वह दान में मिले धन का इस्तेमाल पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों की मदद के लिए करता था। यह भी पता चला कि मदरसे में मारे गये आतंकवादी वहां कम से कम दो महीने से रह रहे थे।
अधिकारियों के मुताबिक, मलिक पर जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है और वह घाटी छोड़कर जा चुका है। सुरक्षा बलों के अनुसार मदरसों का इस्तेमाल आतंकवादी केवल स्थानीय कश्मीरी जनता को निशाना बनाकर हमले करने के लिए नहीं करते बल्कि कश्मीर के बच्चों और युवाओं को गुमराह करने के लिए भी करते हैं।
इन किशोरों को आतंकवादियों द्वारा गुमराह किये जाने से चिंतित सुरक्षा बल विशेष शिविर आयोजित करके उनके माता-पिता को बता रहे हैं कि मदरसों का इस्तेमाल उनके बच्चों को बरगलाने के लिए होने का खतरा है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘अगर घाटी में आतंकवादी इस तरह से किशोरों और बच्चों को बरगलाएंगे और आम कश्मीरी अभिभावक इस बात से अनजान रहेंगे कि जिन शिक्षकों पर वे अपने बच्चों के लिए भरोसा कर रहे हैं वे उन्हें अंधेरे में रख रहे हैं तो कश्मीर की अगली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित नहीं लगता।’
अधिकारियों ने कश्मीर के लोगों से इन करतूतों के खिलाफ आवाज उठाने और अपने बच्चों को आतंकवाद के कुचक्र में पड़ने से बचाने का अनुरोध किया है।