Supreme Court on Freebies: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आज मुफ्त चुनावी वादे के मुद्दे पर एक बार फिर सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एमवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर सुनवाई करेगी। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने इस मामले में कमेटी गठित करने की ओर इशारा किया था। सभी पक्षों से इस पर शनिवार तक जवाब दाखिल करने को कहा गया था।
बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल की थी याचिका
दरअसल, जनवरी 2022 में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस तरह के चुनावी वादों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल कर राजनीतिक पार्टियों की तरफ से किए जानेवाले मुफ्त चुनावी वादों पर रोक लगाने की अपील की गई थी। इस याचिका में यह मांग की गई है कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। इस मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय से सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से मुफ्त चुनावी वादे की परिभाषा तय करने की अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर एक्सपर्ट कमेटी गठित करने पर विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक्सपर्ट कमेटी में वित्त आयोग, नीति आयोग, रिजर्व बैंक, लॉ कमीशन, राजनीतिक पार्टियों समेत दूसरे पक्षों के प्रतिनिधि भी होने चाहिए।
एक्सपर्ट कमेटी के गठन का सुझाव
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक्सपर्ट कमेटी के गठन को लेकर सुझाव दिया था। उन्होंने कहा था वह एक ऐसी कमेटी का प्रस्ताव रख रहे हैं जिसमें केंद्र सरकार के सचिव, प्रत्येक राज्य सरकार के सचिव, प्रत्येक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, नीति आयोग के प्रतिनिधि, आरबीआई, वित्त आयोग और राष्ट्रीय करदाता संघ शामिल है।
कोर्ट की तरफ से मांगे गए थे सुझाव
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच कर रही है। कोर्ट केंद्र सरकार, याचिकाकर्ता और वकील कपिल सिब्बल से इस मामले को लेकर सुझाव मांग चुकी है। कोर्ट पहले ही यह कह चुका है कि चुनाव में मुफ्त की योजनाओं से सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचता है। कोर्ट ने भारत सरकार और चुनाव आयोग से ऐसी योजनाओं पर विचार करने के लिए कहा था।
आम आदमी पार्टी ने बताया था मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
वहीं इस मामले में आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विधायी मदद के बिना चुनावी भाषणों पर रोक, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। आप ने अपनी दलीलों में कहा, 'इस तरह का प्रतिबंध , कार्यपालिका या न्यायपालिका के जरिए, संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रभावित करेगा।
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