Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक शख्स याचिका दायर कर खुद को राष्ट्रपति बनाने की मांग की। जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उसे जमकर फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को खुद को भारत का राष्ट्रपति बनाने की मांग करने वाले व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और हिमा कोहली ने किशोर जगन्नाथ सावंत की एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जो व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश हुए थे। शख्स ने राष्ट्रपति पद के लिए निर्विवाद उम्मीदवार बनाने की मांग की और 2004 से वेतन और भत्तों की भी मांग की, क्योंकि उसे नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को तुच्छ बताया
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका तुच्छ है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस तरह की याचिका दायर करने से परहेज करें, बल्कि उस क्षेत्र को आगे बढ़ाएं जहां उसके पास विशेषज्ञता हो। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसने राष्ट्रपति के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाए हैं और वह राष्ट्रपति को दिए जाने वाले वेतन और भत्ता भी चाहता है। पीठ ने कहा, उच्चतम संवैधानिक पद के खिलाफ लगाए गए आरोप जिम्मेदारी की भावना के बिना हैं और रिकॉर्ड से हटा दिए गए हैं।
याचिकाकर्ता ने अदालत से फिर से विचार करने को कहा
अदालत से याचिका स्वीकार करने का अनुरोध करते हुए सावंत ने कहा कि उनका मानना है कि उनका मामला संविधान के मूल लोकाचार को फिर से परिभाषित करेगा और उन्हें सरकारी नीतियों और प्रक्रियाओं का विरोध करने का पूरा अधिकार है। सावंत ने लगभग दो दशकों के अनुभव के साथ एक पर्यावरणविद् होने का दावा किया।
अदालत ने कहा -याचिकाकर्ता सड़क पर खड़े होकर भाषण दे लेकिन ऐसी याचिका लगाकर कोर्ट का समय बर्बाद न करे
पीठ ने कहा कि उसे नीतियों और प्रक्रियाओं को लड़ने का अधिकार है और वह बाहर सड़क पर खड़े होकर भाषण भी दे सकता है, लेकिन इस तरह की तुच्छ याचिकाएं दायर करके अदालत का समय बर्बाद नहीं कर सकता। हालांकि, सावंत ने जोर देकर कहा कि वह एक पर्यावरणविद् हैं और उन्हें पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों में नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई थी। पीठ ने कहा कि इन मामलों का फैसला करना उसका कर्तव्य है और याचिका को खारिज करने का आदेश पारित किया। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह भविष्य में इसी विषय पर सावंत की याचिका पर विचार न करे।
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