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Hindi News भारत राष्ट्रीय Supreme Court: केंद्र बनाए नए जमानत कानून, लोकतंत्र में पुलिस राज की छवि नहीं बना सकते - सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: केंद्र बनाए नए जमानत कानून, लोकतंत्र में पुलिस राज की छवि नहीं बना सकते - सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी कैदी को लगातार हिरासत में रखने के बाद आखिरकार बरी करना उसके प्रति ‘गंभीर अन्याय’ है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि उसे जमानत के मामलों को सरल बनाने के लिए अलग जमानत कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।

Supreme Court- India TV Hindi Image Source : FILE Supreme Court

Highlights

  • सरकारों चार महीने में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे
  • लगातार हिरासत में रखने के बाद बरी करना उसके प्रति ‘गंभीर अन्याय’
  • जमानत की याचिकाओं पर दो सप्ताह में और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर छह सप्ताह में फैसला हो

Supreme Court: आपने कई ऐसे मामले सुने होंगे कि कोई व्यक्ति कई वर्षों तक लगातार जेल में रहा। उसे एकबार भी जमानत नहीं दी गई। कई सालों में उसकी सुनवाई पूरी होती है और उस दौरान वह एक आरोपी बनकर जेल में रहता है। सुनवाई के बाद फैसला आता है कि आरोपी असल में आरोपी है ही नहीं। फिर उसे वर्षो बाद जेल से रिहा कर दिया जाता है। ऐसे ही न जाने कितने मामले आते हैं। देश की जेलें भरी पड़ी हैं। आरोपी जमानत के लिए याचिका भी लगाते हैं, लेकिन कानूनी पचड़ों की वजह से उन्हें जमानत नहीं दी जाती है। अब ऐसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर की है। 

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि किसी कैदी को लगातार हिरासत में रखने के बाद आखिरकार बरी करना उसके प्रति ‘गंभीर अन्याय’ है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा कि उसे जमानत के मामलों को सरल बनाने के लिए अलग जमानत कानून बनाने पर विचार करना चाहिए। देशभर की जेलों में कैदियों की भीड़ और इनमें भी दो तिहाई से अधिक विचाराधीन कैदी होने के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सिफारिश की है। 

लोकतंत्र में पुलिस राज की छवि नहीं बना सकते 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि नियम विशेष रूप से मना न करते हों तो जमानत की याचिकाओं पर दो सप्ताह में और अग्रिम जमानत याचिकाओं पर छह सप्ताह में फैसला लिया जाना चाहिए। जस्टिस एसके कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने सीबीआई द्वारा पकड़े गए एक व्यक्ति के मामले में फैसला देते हुए यह बात कही। मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि, आज भी देश की अपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, आजादी से पहले बनाए गए दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों में कुछ बदलावों के साथ लगभग उसी रूप में हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं और पत्रकारों सहित कई विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं को देखते हुए नए जमानत कानून को तैयार करने पर विचार करने की सिफारिश महत्व रखती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोकतंत्र में ऐसी छवि कभी नहीं बन सकती है कि यह पुलिस राज है।

चार महीनों में रिपोर्ट दाखिल करें 

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने कई दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि जांच एजेंसियां ​​और उनके अधिकारी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41-ए (आरोपी को पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करना) का पालन करने के लिए बाध्य हैं। अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों से उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने को भी कहा, जो जमानत की शर्तों को पूरा करने में समर्थ नहीं हैं। न्यायालय ने ऐसे कैदियों की रिहाई में मदद के लिए उचित कदम उठाने का भी निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों और राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में इस संबंध में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।

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