A
Hindi News भारत राष्ट्रीय 'तलाक' पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, अब पति-पत्नी को नहीं करना होगा 6 महीने का इंतजार

'तलाक' पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, अब पति-पत्नी को नहीं करना होगा 6 महीने का इंतजार

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।

प्रतीकात्मक फोटो- India TV Hindi Image Source : REPRESENTATIVE IMAGE प्रतीकात्मक फोटो

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने आज सोमवार को तलाक पर अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते बिगड़ जाएं और शादी का जारी रहना संभव न हो, तो वह सीधे अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।

यह फैसला जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक पर ये फैसला सुनाते हुए गाइडलाइन भी जारी की है। कोर्ट ने गाइडलाइन में उन वजहों का जिक्र किया है जिनके आधार पर पति-पत्नी का रिश्ता कभी पटरी पर ना आने वाला माना जा सकता है। कोर्ट की ओर से जारी गाइडलाइन में रखरखाव, एलिमनी यानी गुजारा भत्ता और बच्चों के अधिकारों के संबंध में भी बताया गया है।

हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 13बी में प्रावधान

दरअसल, हिंदू मैरिज एक्ट-1955 की धारा 13बी में इस बात का प्रावधान है कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए फैमिली कोर्ट को आवेदन दे सकते हैं। हालांकि फैमिली कोर्ट में मुकदमों की अधिक संख्या के कारण जज के सामने आवेदन सुनवाई के लिए आने में वक्त लग जाता है। इसके बाद तलाक का पहला मोशन जारी होता है, लेकिन दूसरा मोशन यानी तलाक की औपचारिक डिक्री हासिल करने के लिए 6 महीने के इंतजार करना होता है।

अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट दे सकता है आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने पहले कई मामलों में शादी जारी रखना संभव न होने होने के आधार पर अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए अपनी तरफ से तलाक का आदेश दिया था। अनुच्छेद 142 में इस बात का प्रावधान है कि न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट कानूनी औपचारिकताओं को दरकिनार करते हुए किसी भी तरह का आदेश दे सकता है।

 2016 में ​संविधान बेंच को रेफर किया गया था ये मामला

ये मामला डिविजन बेंच ने जून 2016 में 5 जजों की संविधान बेंच को रेफर किया था। इस मुद्दे को संविधान बेंच के पास इस सवाल के साथ भेजा गया था कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए भी अनिवार्य वेटिंग पीरियड को खत्म किया जा सकता है? हालांकि, बेंच ने ये भी विचार करने का फैसला किया कि जब शादी में सुलह संभावना ना बची हो, तो क्या विवाह को खत्म किया जा सकता है?

बेंच ने सितंबर 2022 में सुरक्षित रख लिया था अपना फैसला

पांच याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद बेंच ने सितंबर 2022 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि सामाजिक परिवर्तन में थोड़ा वक्त लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है, लेकिन समाज को इसके साथ बदलने के लिए राजी करना मुश्किल होता है। इंदिरा जयसिंह, कपिल सिब्बल, वी गिरी, दुष्यंत दवे और मीनाक्षी अरोड़ा जैसे सीनियर एडवोकेट्स को इस मामले में न्याय मित्र बनाया गया था।

यह भी पढ़ें-

"तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा", CM पद की दावेदारी पर एकनाथ शिंदे का अजित पवार पर बड़ा हमला

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद पर फिर से मथुरा की अदालत में होगी सुनवाई, इलाहाबाद HC का आदेश

Latest India News